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आचार्य कुंदकुंददेव
"माँ ! आप किसकी आयु गिन रही हैं ? आयु आत्मा की होती है या मनुष्य पर्याय की ? मनुष्य अवस्था की अपेक्षा से विचार किया जाय तो भी आठवर्ष के बाद केवलज्ञान प्राप्त करने की सामर्थ्य मनुष्य अवस्था में है ऐसा शास्त्र का वचन है । ऐसी स्थिति में मैं छोटा हूँ क्या ? आत्मसिद्धि एवम् किसी भी धार्मिक कार्य के लिए ही तीर्थंकरादि महापुरुषों के आदर्श का अवलोकन किया जाता है, अन्य विषय कषायादि पोषण के लिए नहीं ।"
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" आचार्य अनंतवीर्य महामुनीश्वर के द्वारा उस दिन बताया गया भविष्य साकार हो रहा है पुत्र !”
"इसीलिए हे तात ! मैं कहता हूँ भविष्य का तिरस्कार करना उस को नकारना पुरुषार्थ नहीं है । "
" पुत्र ! तुम्हारे वियोग के विचार से असह्य दुःख हो रहा है, फिर प्रत्यक्ष में वियोग हो जाने पर
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"यह दुःख शाश्वत नहीं है माँ ! आप दोनों के उदात्त मन की स्वाभाविक उदारता को मैं जानता हूँ । आप मुझे हँसते-हँसते विदा करें ।"
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"विरह की वेदना असह्य है, पुत्र !”
क्षमा करो माँ ! विरक्ति के विशाल मैदान में स्थित भगवान मुझे अपने साथ रहने के लिए पुकार रहे हैं । मैं उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता ।"
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पद्मप्रभ की आंतरिक ध्वनि में दृढ़ निश्चय था ।
“प्रिय पुत्र ! यह घर तुम्हारे जाने से आज ही कांतिविहीन हो जायगा ।"