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________________ आचार्य कुंदकुंददेव २३ यथार्थ व अनादिनिधन वस्तुस्वरूप तथा भगवान आत्मा के शुद्धात्मनिरूपक स्पष्ट, मधुर व महान उपकारी उपदेश उस ग्वाले के स्वच्छ मनमंदिर में समा रहा था। इस समय " मैं ग्वाला हूँ गायों का संरक्षण संवर्धन, पालन-पोषण करना मेरा कार्य है” इत्यादि अपनी तात्कालिक पर्याय अवस्था का उसे सर्वथा विस्मरण हो गया था । संतोषामृत से तृप्त महायोगी के उपदेश सुनने के लिए ही मेरा जीवन है, ऐसी भावना उसके मन में जन्म ले रही थी । उपदेश समाप्ति पश्चात् सभी सभ्य समागत श्रोता तो चले गये, तथापि कौण्डेश उपदेशित विषय के चिन्तन में ही मग्न होने से पेड़ की तरह वहीं खड़ा रहा। कुछ समय बाद मानों नींद में से ही जागृत हो गया हूँ - ऐसा उसे लगा । देखता है तो सूर्य उस दिन की अपनी यात्रा समाप्त करके आकाश के पश्चिमी छोर से समस्त विश्व को अरूण किरणों से आवृत कर रहा हो । मानों दिगम्बर साधु के होनेवाले वियोग से वह स्वयं दुःखी हो रहा हो । अज्ञानी लोग आनेवाले गाढ़ अन्धकार को न जानकर मनमोहक कोमल अरूण किरणों में ही मोहित हो रहे थे । कौण्डेश वहाँ से गायों के पास आया और उन्हें हाँककर घर ले जाने लगा । इतने में बहुत जोर से वर्षा होने के कारण वह सम्पूर्ण भीग गया । प्रतिदिन गायों को गो-शाला में बांधकर भोजन करके सो जानेवाला वह ग्वाला आज कुछ भी खाये - पिये बिना ही सो गया। सो तो गया; लेकिन रातभर उसे नींद नहीं आयी । वह मुनिमहाराज के उपदेश का ही चिन्तन-मनन करता रहा । अपनी बालबुद्धि के अनुसार सत्यासत्य का निर्णय करने की चेष्टा में निमग्न
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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