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________________ आचार्य कुंदकुंददेव हो गया । यदि वस्तुस्वरूप मुनिमहाराज के उपदेशानुसार है तो मानव का दिन-रात चलनेवाला प्रयत्न क्या इन्द्रजाल है ? यदि आत्मा शाश्वत है तो जन्म-मरण का क्या अर्थ है ? इस प्रकार चिन्तन करते-करते प्रात: काल हो गया। सुबह के काम के लिए कौण्डेश उठा ही नहीं | उलझन भरे भावना लोक में विचरते हुए उसे बाह्य जगत की कुछ परवाह नहीं थी। अत: उसे ढूंढते-ढूंढते उसका मालिक गोशाला में आ गया । उसने लेटे हुए कौण्डेश के शरीर पर हाथ रखा तो उसे गरम लोहे पर हाथ रखने का सा अनुभव हुआ। कौण्डेश ज्वर-पीड़ित था क्योंकि शरीर बारिश में भीग गया था, रातभर नींद भी नहीं आई थी। मालिक को भय-सा लगा | उसने शीघ्र ही वैद्यों को बुलाकर उपचार कराया। अनेक प्रयत्न करने पर भी ज्वर सप्ताह पर्यंत उतरा ही नहीं । कौण्डेश बहुत अशक्त हो गया । ज्वर उतरने के एक सप्ताह बाद भी गायों को चराने के लिए वह जंगल में नहीं जा सका। ___ इन दो सप्ताहों के अन्तराल में केवल कौण्डेश के शरीर और विचारों में ही परिवर्तन हुआ हो ऐसा नहीं किंतु जंगल की स्थिति भी आमूलचूल बदल गयी थी। निसर्ग-प्रकृति मानव की इच्छानुसार रहे-ऐसा बिल्कुल नहीं है । जड़पुद्गलों की सत्ता-अस्तित्व भी स्वतंत्र है। उनमें परिवर्तन भी स्वतंत्र ही होता रहता है। उस परिवर्तन के लिए किसी परिवर्तनकार भगवान की अथवा विशिष्ट मानव की अनादि काल से आवश्यकता ही नहीं है। क्योंकि अनादिनिधन वस्तुएँ भिन्न-भिन्न अपनी-अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती रहती
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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