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________________ आचार्य कुंदकुंददेव चार-पाँच वर्षों से यहाँ रोज आ रहा हूँ, पर ऐसे व इतने लोग कभी इस जंगल में आये नहीं-आज ये लोग क्यों आ रहे हैं ?" इस प्रकार कौतूहल से वन प्रदेश में पैदल रास्ते से जाते हुए उन लोगों को देखता हुआ खड़ा रहा। न जाने क्या सोचकर चरती हुई गायों को छोड़कर वह नवयुवक उन नागरिकों के पीछे चल पड़ा। ___ उस प्रौढ़ बालक के मन में चलते समय अनेकानेक विचार उत्पन्न हो रहे थे-"कोमल कायावाले ये धनवान लोग कांटों-पत्थरों से भरी हुई भूमि पर नंगे पांव चलते हुए और गर्मी के कारण चलनेवाली लू की भी चिंता न करते हुए जा रहे हैं, अत: यहाँ कोई न कोई महत्वपूर्ण पवित्र स्थान अवश्य होना चाहिए। अन्यथा ये बड़े और सुखी लोग यहाँ क्यों आते ?" इस प्रकार विचार करता हुआ कौण्डेश आगे बढ़ रहा था। इतने में ही सामने एक उच्च शिलाखण्ड पर एक दिगम्बर महामुनीश्वर दिखाई दिये। उनके पास पहले से ही कुछ लोग बैठे थे। ये लोग भी वहीं जाकर बैठ गये। सभी लोग अपने सर्वांग को मानो कान ही बनाकर अत्यंत एकाग्र चित्त से साधु महाराज का उपदेश सुन रहे थे । और उपदेशदाता की वीतराग, शांत, गंभीर मुखमुद्रा को देखकर अति आनंदित हो रहे थे। अपने कान तथा आँखों को सफल समझ रहे थे। प्रातः काल से सन्ध्यापर्यंत गायों के साथ ही एकमेक होकर प्रकृतिकी गोद में अपना जीवन व्यतीत करनेवाले उस नवयुवक को उन लोगों की रीति-रिवाज का पता नहीं था । इस कारण कौण्डेश आश्चर्यचकित होकर वहीं एक वृक्ष की ओट में खड़े होकर उन महामुनिराज के अमूल्य वचनों को एकाग्र चित्त से सुन रहा था ।
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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