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आचार्य कुंदकुंददेव
ऋद्धि :- तपश्चरण के प्रभाव से योगीश्वरों को चमत्कारिक शक्तिविशेष की प्राप्ति को ऋद्धि कहते हैं।
कर्म :- मिथ्यात्व. कषाय तथा योग से ग्रहण किया हुआ सूक्ष्म पुद्गल द्रव्य ।
केवली :- केवल अर्थात् शुद्ध आत्मा को ही जानते हैं, उसका ही अनुभव करते हैं वे केवली । केवलज्ञान अर्थात् पूर्ण विकसित ज्ञान सहित आत्मा । इन्द्रिय, कालक्रम, दूरदेश इत्यादि व्यवधानों से रहित ज्ञानी ।
तप :- कर्म नाशक, इच्छा-निरोधक, विषय कषायों का निग्रह करनेवाला और आत्मा को आत्मा द्वारा आत्मा में जोड़ने वाला आत्म पुरुषार्थ /
तत्व :- वस्तु का जो भाव-रूप वह तत्व / पदार्थ का जो स्वभाव उसी स्वभाव. रूप से पदार्थ का रहना वह पदार्थ का तत्व है । तत्व, परमार्थ, द्रव्यस्वभाव, ध्येय, शुद्ध ये सब शब्द एकार्थवाची हैं। तत्व एक लक्षण सत् है । सत् वही तत्त्व है, स्वभावसिद्ध है । तत्त्व के जीवादि सात भेद हैं ।
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तीर्थकर :- ३४ अतिशय तथा ८ प्रातिहार्य एवम् अनन्त चतुष्टय सहित, त्रिभुवन के अद्वितीय स्वामी, रत्नत्रयात्मक मोक्षमार्ग का प्रचलन करनेवाले, गर्भादि पंचकल्याणकों के धारक ।
तीन शल्य :- माया, मिथ्यात्व व निदान / कपाटाचार-माया, विपरीत मान्यता (श्रद्धा), अर्थात् मिथ्यात्व और भावी भोगाकांक्षा निदान /