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________________ ___ १३४ आचार्य कुंदकुंददेव पारिभाषिक-शब्दकोश अरहंत :- नमस्कार योग, .जा और सत्कार योग्य, देवों में उत्तम | घातिकर्म के नाशं से उत्पन्न केवलज्ञान द्वारा समस्त पदार्थों को एक काल में (युगपद) जाननेवाले वीतराग, सर्वज्ञ व हितोपदेशी। अज्ञानी :-निजशुद्धात्मा को न जाननेवाला न अनुभवनेवाला आत्मज्ञानरहित जीव । अपने से बाहय पदार्थों में अपनी सत्ता स्वीकार करनेवाला बहिरात्मा । अप्रमत्त :- व्यक्त-अव्यक्त समस्त प्रमादों से रहित आत्म-लीन मुनि । मूलगुण और उत्तरगुणों से मण्डित, स्व-परज्ञान सहित, कषायों का उपशमक अथवा क्षपक न होने पर भी ध्यानमग्न साधु की अवस्था। आराधना :-दर्शनज्ञान, चारित्र व तप-इन चारों का उद्योतन करना, उन रूप स्वयं परिणत हो जाना. चारों को दृढ़तापूर्वक धारण करना, चारों का आमरण पालन करना । आहारक शरीर:-सूक्ष्म पदार्थ का ज्ञान करने की अथवा असंयम परिहार की इच्छा से प्रमत्तसंयत साधु जिस शरीर की रचना करते औदारिक:-शरीर का एक भेद, मनुष्य तथा तिर्यच जीवों का शरीर स्थूल होता है उसे औदारिक शरीर, गर्भ और सम्मूछन जन्म से उत्पन्न होनेवाला शरीर । उपासना :-शुद्धात्म-भावना की सहकारी कारणरूप से की जानेवाली सेवा ।
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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