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आचार्य कुंदकुंददेव
सिद्धभक्ति :- इसमें १२ गाथाओं के द्वारा सिद्धों के गुण, भेद, सुख, स्थान, आकृति, सिद्धि का मार्ग और क्रम का उल्लेख करते हुए भक्ति भाव से सिद्धों की वंदना की है ।
श्रुतभक्ति :- इसमें ११ गाथाओं के द्वारा द्वादशांग के भेद प्रभेदों का उल्लेख करके श्रुत को नमस्कार किया है। साथ ही १४ पूर्वी में प्रत्येक की वस्तु संख्या और पाहुड़ों की संख्या दी गई है ।
चारित्रभक्ति :- दस अनुष्टप पद्यों द्वारा सामायिक छेदोंपस्थापना परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात चारित्र नामक पाँच चारित्र, २८ मूलगुण, दसधर्म, तीन गुप्तियाँ, शील, परीषह और उत्तर गुणों का वर्णन करके उनकी प्राप्ति की इच्छा की गयी है ।
योगिभक्ति :- इसमें २३ गाथाओं के द्वारा जैन साधुओं का आदर्शजीवन और उनकी चर्या का वर्णन है । योगियों की अनेक अवस्थाओं का, सिद्धियों का, गुणों का उल्लेख करते हुए उन्हें भक्तिभाव से नमस्कार किया गया है।
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आचार्यभक्ति :- इसमें ७० गाथाओं के द्वारा आचार्य परमेष्ठियों के मुख्य गुणों का उल्लेख करते हुए उन्हें नमस्कार किया है ।
निर्वाणभक्ति :- इसमें २७ गाथाओं में निर्वाण प्राप्त तीर्थकरों और निर्वाण स्थानों का स्मरण करके उन्हें वन्दना की है। इस भक्तिपाठ से अनेक ऐतिहासिक और पौराणिक विषय ज्ञात होते हैं।
पंचगुरुभक्ति :- इसमें ५ गाथाओं के द्वारा अरहंत सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं की स्तुति की है और उसक फल बतलाकर उन पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार करके भव भव में सुख प्राप्ति की प्रार्थना की गयी है ।