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________________ PPR प्राचार्य दाइड ममोक्षाधिकार जैसे कोई पुला-ौं लाया हूँ इतने जानने मात्र से मुक्त नहीं होता सुक्ति के लिए प्रयज करना अपेक्षित है। वैसे ही कर्म बंध के स्वरूप के ज्ञानमात्र से मुक्तिनहीं मिलती। किन्तु सगादि को छोड़करू शुद्धा सम परिणताहोने से मुक्ति मिलती हैताआत्मा और मीकि स्वभाव को जानकर आत्मा के स्वभावको अपामारना और कर्मो को छोड़नायिही मुक्त होने का यथार्थ उपाय Ref सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार सम्यग्दर्शन, कं सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रलका विषयः शुद्धीत्माऽ हैावहाशुद्धज्ञानस्वरूप है। यह शुद्धत्मिा किसी का कारण नहीं है और किसी का कार्य भी नहीं हैं। इसकासाथापरद्रव्य काक्रिसीमीप्रकारका सम्बन्धीनहीं है। आत्मा स्वभाव ससुखस्वरूप है औरवह परद्रव्यं का कर्ता औरस्मोक्तो कदापि नहींहगाअज्ञानी अज्ञानवशं अपनेरिकोपरद्रव्य कैफार्म की की भक्ति मानता है औरादुःखी होता है क है FIR IN HF नियमसारका नागना पर काम शष्ट in हि इसमें १८७ गाथायें हैं । इस ग्रथा परजमुनिराजश्री पद्मप्रभमंलधारीदेव नैतिात्पर्यवृत्ति नामक टीका लिखीहीयह ग्रन्थ बारह अधिकारों में विभक्त है जीवीअजीव,शुद्धभावा व्यवहारचारित्री परमार्थ-प्रतिक्रमणानिश्चयप्रत्याख्यान । परमालोचनाशुिद्ध निश्चय प्रायश्चित्त परम-समाधि परमभक्तिवानिश्चय परमावश्यक तथा शुद्धोषियोग्रासोक्षमार्ग का निरूपण करनेवाला सर्वोत्कृष्टान-नया है। नियमसाराशब्द कारअर्थ है।शुद्धरत्नत्रय ippi-कोट गाना इस परंमांसस के प्रत्येक पृष्ठ-पाआचार्य भगवान नास्वयंअत्तुभूत अलौकिक, अनुपम तत्व को बताया है | शुद्ध-निश्चय रत्नत्रय की
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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