SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 9. ] [प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम कृतस्य पंचभावप्रपंचप्रतिपावनपरायणस्य निश्चयप्रतिक्रमणप्रत्याख्यानप्रायश्चित्तपरमालोचनानियमव्युत्सर्गप्रभृतिसकलपरमार्थक्रियाकाण्डाडंबरसमृद्धस्य उपयोगत्रयविशालस्य परमेश्वरस्य शास्त्रस्य।" और यह नियमसार नामक शास्त्र समस्त आगम के अर्थसमूह का प्रतिपादन करने में समर्थ है, इसमें 'नियम' शब्द से सूचित विशुद्ध मोक्षमार्ग का प्रतिपादन है, यह पंचास्तिकाय के निरूपण से शोभित है, इसमें दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार एवं वीर्याचार - इन पाँच प्राचारों का विस्तृत विवेचन है, इसमें छह द्रव्यों का विविध विवेचन तथा सात तत्त्व एवं नव पदार्थ भी समाये हुए हैं तथा इसमें पंचभावों का प्रतिपादन भी बड़ी ही प्रवीणता से किया गया है। निश्चय-प्रतिक्रमण, निश्चय-प्रत्याख्यान, निश्चय-प्रायश्चित्त, परमआलोचना, नियम, व्युत्सर्ग प्रादि सम्पूर्ण परमार्थ क्रियाकाण्ड के आडम्बर से यह नियमसार नामक पारमेश्वरी शास्त्र समृद्ध है तथा तीन उपयोगों से सुसम्पन्न है।" 187 गाथाओं में प्रतिपादित उक्त सम्पूर्ण विषय-वस्तु को नियमसार में निम्नलिखित बारह अधिकारों में विभाजित किया गया है : (1) जीवाधिकार (2) अजीवाधिकार (3) शुद्धभावाधिकार (4) व्यवहारचारित्राधिकार (5) परमार्थप्रतिक्रमणाधिकार (6) निश्चयप्रत्याख्यानाधिकार (7) परमालोचनाधिकार (8) शुद्धनिश्चयप्रायश्चित्ताधिकार (6) परमसमाधि-अधिकार (10) परमभक्ति-अधिकार (11) निश्चयपरमावश्यकाधिकार (12) शुद्धोपयोगाधिकार 1 नियमसार गाथा 187 की तात्पर्यवृत्ति टीका
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy