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________________ ५४ ] [ प्राचार्य कुन्दकुन्द धीर उनके पंच परमागम प्रकार सभा में अध्यात्म - उपदेश होने पर बहुत से जीवों को मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती है, परन्तु कोई उल्टा पाप में प्रवर्ते, तो उसकी मुख्यता करके अध्यात्मशास्त्रों का निषेध नहीं करना । तथा अध्यात्मग्रन्थों से कोई स्वच्छन्द हो, सो वह तो पहले भी मिथ्यादृष्टि था, अब भी मिथ्यादृष्टि ही रहा। इतना ही नुकसान होगा कि सुगति न होकर कुगति होगी । परन्तु अध्यात्म - उपदेश न होने पर बहुत जीवों के मोक्षमार्ग की प्राप्ति का प्रभाव होता है और इसमें बहुत जीवों का बहुत बुरा होता है, इसलिये अध्यात्म - उपदेश का निषेध नहीं करना । " पण्डित टोडरमलजी ने तो अपने इस कथन में समयसार जैसे आध्यात्मिक ग्रन्थों के पठन-पाठन मात्र का ही समर्थन नहीं किया है, अपितु उनके आधार पर जनसभाओं में उपदेश देने का भी सतर्क प्रतिपादन किया है । आज के इस प्रशान्त जगत में अध्यात्म ही एक ऐसा दीपक है, जो भटकी हुई मानवसभ्यता को सन्मार्ग दिखा सकता है | अध्यात्म का जितना अधिक प्रचार-प्रसार होगा, सुख-शान्ति की संभावनाएं भी उतनी ही अधिक प्रबल होंगी। परमाध्यात्म के प्रतिपादक इस परमपावन परमागम का जितना भी प्रचार-प्रसार किया जाय, उतना ही कम है; अतः हम सभी आत्मार्थियों का पावन कर्तव्य है कि इसके प्रकाशन, वितरण, पठनपाठन में सम्पूर्णत: समर्पित हो जावे । भव और भव के भाव का प्रभाव करने में सम्पूर्णतः समर्थं इस ग्रन्थाधिराज का प्रकाशन, वितरण, पठन-पाठन निरन्तर होता रहे और आप सबके साथ मैं भी इसके मूल प्रतिपाद्य समयसारभूत निजात्मा में ही एकत्व स्थापित कर तल्लीन हो जाऊँ अथवा मेरा यह नश्वर जीवन भी इसी के अध्ययन, मनन, चिन्तन तथा रहस्योद्घाटन में ही अविराम लगा रहे - इस पावन भावना के साथ विराम लेता हूँ । १ मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ २६२
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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