________________
समयसार ]
[ ५३ प्राप्ति तो उन्हीं को करना है, मुनिराज तो सम्यग्दृष्टी ही होते हैं; क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना तो मुनि होना संभव ही नहीं है।
समयसार की चौथी गाथा में ही कहा गया है कि अज्ञानीजनों ने काम, भोग और बंध की कथा तो अनेक बार सुनी है, मैं तो उन्हें एकत्व-विभक्त आत्मा की ऐसी कथा सुनाने जा रहा है कि जिसे न तो उन्होंने कभी सुनी है, न जिसका परिचय प्राप्त किया है और न जिनके अनुभव में ही वह भगवान आत्मा प्राया है।
सम्यग्दर्शन के विषयभूत भगवान आत्मा की बात भी जिन्होंने नहीं सुनी है, उनके लिए ही समयसार लिखा गया है - इस बात को दृष्टि से ओझल करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है ।
समयसार में प्रतिपादित विषयवस्तु का संक्षिप्त परिचय दिया ही जा चुका है। क्या उसमें आपको कुछ ऐसा लगा कि जो गृहस्थों को पढ़ने योग्य न हो ? उक्त विषयवस्तु के आधार पर अब आप ही निर्णय कीजिए कि समयसार सभी को पढ़ना चाहिए या नहीं ?
हाँ, हमें इस बात की प्रसन्नता है कि जिन मनीषियों ने जीवनभर समयसार के पठन-पाठन का विरोध किया है, आज वे मनीषी स्वयं समयसार पढ़ रहे हैं, उस पर प्रवचन कर रहे हैं। उनके इस अप्रत्याशित परिवर्तन एवं साहस के लिए हम उनका सच्चे हृदय से अभिनन्दन करते हैं। हमारी तो यह पावन भावना है कि किसी के भी माध्यम से सही, यह समयसार घर-घर में पहुंचे और जन-जन की वस्तु बने।
द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का बहाना लेकर परमाध्यात्म के प्रतिपादक इस शास्त्र के अध्ययन का निषेध करनेवाले मनीषियों को पण्डित टोडरमलजी के इस कथन की ओर ध्यान देना चाहिए :
"यदि झूठे दोष की कल्पना करके अध्यात्मशास्त्रों को पढ़नेसुनने का निषेध करें तो मोक्षमार्ग का मूल उपदेश तो वहाँ है, उसका निषेध करने से तो मोक्षमार्ग का निषेध होता है । जैसे, मेघवर्षा होने पर बहुत से जीवों का कल्याण होता है और किसी को उल्टा नुकसान हो, तो उसकी मुख्यता करके मेघ का तो निषेध नहीं करना; उसी