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________________ तृतीय अध्याय प्रवचनसार जिनेन्द्र भगवान के प्रवचन (दिव्यध्वनि) का सार यह कालजयी 'प्रवचनसार' परमागम प्राचार्य कुन्दकुन्द की सर्वाधिक प्रचलित अद्भुत सशक्त संरचना है । समस्त जगत को ज्ञानतत्त्व और ज्ञेयतत्त्व ( स्व - पर) के रूप में प्रस्तुत करने वाली यह अमर कृति विगत दो हजार वर्षों से निरन्तर पठन-पाठन में रही है । आज भी इसे विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में स्थान प्राप्त है । यद्यपि आचार्यों में कुन्दकुन्द और उनकी कृतियों में समयसार सर्वोपरि है, तथापि समयसार अपनी विशुद्ध प्राध्यात्मिक विषयवस्तु के कारण विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमों में स्थान प्राप्त नहीं कर सका है; पर अपनी विशिष्ट शैली में वस्तुस्वरूप के प्रतिपादक प्रवचनसार का प्रवेश सर्वत्र अबाध है । प्रमाण और प्रमेय व्यवस्था का प्रतिपादक यह गन्धराज आचार्य कुन्दकुन्द की एक ऐसी प्रौढ़तम कृति है, जिसमें वे आध्यात्मिक संत के साथ-साथ गुरु- गम्भीर दार्शनिक के रूप में प्रस्फुटित हुए हैं, प्रतिष्ठित हुए हैं । आचार्य जयसेन के अनुसार यदि पंचास्तिकायसंग्रह की रचना संक्षेपरुचि वाले शिष्यों के लिए हुई थी, तो इस ग्रन्थराज की रचना मध्यम रुचि वाले शिष्यों के लिए हुई है ।" इस ग्रन्थराज की विषयवस्तु को तीन महा-श्रधिकारों में विभाजित किया गया है । 'तत्त्वदीपिका' टीका में प्राचार्य अमृतचन्द्र उन्हें ज्ञानतत्व - प्रज्ञापन, ज्ञेयतत्त्व- प्रज्ञापन एवं चरणानुयोगसूचक चूलिका १ (क) प्रवचनसार : तात्पयंवृत्ति, पृष्ठ २ (ख) पंचास्तिकाय संग्रह : तात्पर्यवृत्ति, पृष्ठ २
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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