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________________ [ ३१ प्राचार्य कुन्दकुन्द ] इनके अतिरिक्त द्वादशातुप्रेक्षा (बारस अणुवेक्खा) एवं दशभक्ति भी आपकी कृतियाँ मानी जाती हैं। इसीप्रकार रयणसार और मूलाचार को भी आपकी रचनायें कहा जाता है। कुछ लोग तो कुरल काव्य को भी आपकी कृति मानते हैं।' उल्लेखों के आधार पर कहा जाता है कि आपने षट्खण्डागम के प्रथम तीन खण्डों पर 'परिकर्म' नामक टीका लिखी थी, किन्तु वह आज उपलब्ध नहीं । अष्टपाहुड में निम्नलिखित आठ पाहुड संगृहीत हैं - (१) दंसणपाहुड (२) सुत्तपाहुड (३) चारित्तपाहुड (४) बोधपाहुड (५) भावपाहुड (६) मोक्खपाहुड (७) लिंगपाहुड एवं (८) सीलपाहुड समयसार जिन-अध्यात्म का प्रतिष्ठापक अद्वितीय महान शास्त्र है। प्रवचनसार और पंचास्तिकायसंग्रह भी जनदर्शन में प्रतिपादित वस्तुव्यवस्था के विशद विवेचन करनेवाले जिनागम के मूल ग्रन्धराज हैं। ये तीनों ग्रन्थराज परवर्ती दिगम्बर जैन साहित्य के मूलाधार रहे हैं। उक्त: तीनों को नाटकत्रयी, प्राभृतत्रयी या कुन्दकुन्दत्रयी भी कहा जाता है। उक्त तीनों ग्रन्थराजों पर कुन्दकुन्द के लगभग एक हजार वर्ष बाद एवं आज से एक हजार वर्ष पहले प्राचार्य अमृतचन्द्रदेव ने संस्कृत भाषा में गम्भीर टीकायें लिखी हैं। समयसार, प्रवचनसार एवं पंचास्तिकायसंग्रह पर आचार्य अमृतचन्द्र द्वारा लिखी गई टीकाओं के सार्थक नामक क्रमशः 'प्रात्मख्याति', 'तत्त्वप्रदीपिका' एवं 'समयव्याख्या' हैं। इन तीन ग्रन्थों पर प्राचार्य अमृतचन्द्र से लगभग तीन सौ वर्ष -~~-बाद-हए आचार्य जयसेन द्वारा लिखी गई 'तात्पर्यवृत्ति' नामक सरल सुबोध टीकायें भी उपलब्ध हैं । १ रयणसार प्रस्तावना
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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