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[ आचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम परमपूज्य आचार्य कुन्दकुन्द के साथ-साथ इस युग में कुन्दकुन्द को जन-जन तक पहुँचानेवाले पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी का हम-जैसे उन लाखों लोगों पर तो अनन्त-अनन्त उपकार है, जिन्होंने साक्षात् उनके मुख से समयसार आदि ग्रन्थों पर प्रवचन सुने हैं और समझ में न आने पर अपनी शंकाओं का सहज समाधान प्राप्त किया है । आज वे हमारे बीच नहीं हैं, पर पैंतालीस वर्ष तक अनवरतरूप से किये गये उनके प्रवचन टेपों एवं पुस्तकों के रूप में हमें आज भी उपलब्ध हैं । आज वे प्रवचन ही हमारे सर्वस्व हैं।
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी ने आचार्य कुन्दकुन्द रचित परमागमों पर मात्र सरल प्रवचन ही नहीं किये, अपितु उक्त परमागमों के सस्ते सुलभ मनोज्ञ प्रकाशन भी कराये; तथा सोनगढ़ (जिलाभावनगर, गुजरात) में श्री महावीर कुन्दकुन्द परमागम मन्दिर का निर्माण कराके, उसमें संगमरमर के पाटियों पर समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय और नियमसार संस्कृत टीका सहित तया अष्टपाहुड उत्कीर्ण कराकर उन्हें भौतिक दृष्टि से भी अमर कर दिया है। उक्त परमागम मन्दिर आज एक दर्शनीय तीर्थ बन गया है।
पवित्रता और पुण्य के अद्भुत संगम इस महापुरुष (श्री कानजी स्वामी) के मात्र प्रवचन ही नहीं, अपितु व्यवस्थित जीवन भी अध्ययन की वस्तु है; उसका अध्ययन किया जाना स्वतंत्ररूप से अपेक्षित है, तत्सम्बन्धी विस्तार न तो यहाँ सम्भव ही है और न उचित ही।
प्राचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित उपलब्ध साहित्य इसप्रकार है :(१) समयसार (समयपाहुड) (२) प्रक्चनसार (पवयणसारो) (३) नियमसार (णियमसारो) (४) पंचास्तिकायसंग्रह (पंचस्थिकायसंगहो) (५) अष्टपाहुड (अट्ठपाहुड)