SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ ] [ प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम से दिया गया जो शुद्धात्मतत्त्व का अनुग्रहपूर्वक उपदेश तथा पूर्वाचार्यो के अनुसार जो उपदेश, उससे मेरे निजवैभव का जन्म हुआ है ।" आगे कहा गया है कि मैं अपने इस वैभव से आत्मा बताऊँगा । तात्पर्य यह है कि समयसार का मूलाधार महावीर, गौतमस्वामी, भद्रबाहु से होती हुई कुन्दकुन्द के साक्षात् गुरु तक आई श्रुतपरम्परा से प्राप्त ज्ञान है । पंडित जयचंदजी छाबड़ा ने अपनी प्रस्तावना में स्पष्ट लिखा है : "भद्रबाहु स्वामी की परम्परा में ही दूसरे गुणधर नामक मुनि हुये । उनको ज्ञानप्रवाद पूर्व के दसवें वस्तु अधिकार में तीसरे प्राभृत का ज्ञान था । उनसे उस प्राभृत को नागहस्ती नामक मुनि ने पढ़ा । उन दोनों मुनियों से यति नामक मुनि ने पढ़कर उसकी चूरिंगका रूप में छह हजार सूत्रों के शास्त्र की रचना की, जिसकी टीका समुद्धरण नामक मुनि ने बारह हजार सूत्रप्रमाण की । इसप्रकार आचार्यों की परम्परा से कुन्दकुन्द मुनि उन शास्त्रों के ज्ञाता हुए। - - इसतरह इस द्वितीय सिद्धान्त की उत्पत्ति हुई ............. इसप्रकार इस द्वितीय सिद्धान्त की परम्परा में शुद्धनय का उपदेश करनेवाले पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, परमात्म प्रकाश श्रादि शास्त्र हैं, उनमें समयप्राभृत नामक शास्त्र प्राकृत भाषामय गाथाबद्ध है, उसकी आत्मख्याति नामक संस्कृत टीका श्री अमृतचंद्राचार्य ने की है।" उक्त सम्पूर्ण कथनों से यह बात अत्यन्त स्पष्ट हो जाती है कि श्राचार्य कुन्दकुन्द को भरतक्षेत्र में विद्यमान भगवान महावीर की श्राचार्य परम्परा से जुड़ना हो अभीष्ट है । वे अपनी बात की प्रामाणिकता के लिए भगवान महावीर और अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु की प्राचार्य परम्परा पर ही निर्भर हैं । यह सब स्पष्ट हो जाने पर भी यह प्रश्न चित्त को कुदेरता ही रहता है कि जब उन्होंने सर्वज्ञदेव सीमन्धर भगवान के साक्षात् दर्शन किए थे, उनका सदुपदेश भी सुना था तो फिर वे स्वयं को उससे क्यों
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy