________________ 156 नियमसार, पंचास्तिकाय संग्रह एवं अष्टपाहुड इन पांच परमागमों का सार इस पुस्तक में है। स्वाध्याय करने वालों के लिए इन पांच कृतियों की विषयवस्तु से परिचित होने के लिए यह ग्रंथ अत्यन्त उपयोगी है / सार-संक्षेप में पांचों ग्रंथों का कम समय में स्वाध्याय इस ग्रंथ द्वारा हो सकता है। पुस्तक में उपसंहार के बाद कुन्दकुन्द शतक आठवें अध्याय में प्रकाशित किया गया है / पांच परमागमों में से चुनी हुई एक सौ एक गाथाएं अर्थ सहित उसमें दी गई हैं / पुस्तक का कागज अच्छा एवं मुद्रण निर्दोष है / मूल्य केवल पांच रुपए रखकर जन-जन तक साहित्य पहुंचाने की दृष्टि से बहुत अच्छा किया गया है / - डॉ० चन्दनमल 'चांद', सम्पावक जनपथ प्रदर्शक (पाक्षिक) जयपुर, मार्च प्रथम पक्ष, 1986 ई० डॉ. भारिल्ल की नवीनतम कृति 'प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंचपरमागम' अध्यात्म के प्रतिष्ठापक आचार्य कुन्दकुन्द के व्यक्तित्व और उनके साहित्य के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने का एक ऐसा सीधा सपाट और सुगम सोपान बन गया है, जिसके द्वारा अनादि से आत्मा से अपरिचित और प्राकृत भाषा से अनभिज्ञ मात्मार्थियों को अध्यात्म शिखर की दुर्गम यात्रा अत्यन्त सुगम हो सकेगी। कम पढ़े-लिखे स्वाध्यायप्रेमी जिज्ञासुओं के लिए तो यह कृति अत्यन्त उपयोगी है ही, व्यापारादि में अत्यन्त व्यस्त रहनेवाले व्यक्तियों के लिए भी कुन्दकुन्द के पंचपरमागमों के सारांश का लाभ अल्प समय में ही इस कृति द्वारा प्राप्त हो सकता है। - पण्डित रतनचन्द मारिल्ल, सम्पादक समन्वयवाणी (पाक्षिक) जयपुर, फरवरी द्वितीय पक्ष, 1986 ई० प्राचार्य कुन्दकुन्द के पंचपरमागमों का सार संक्षेप पुस्तक में बोधगम्य भाषा में प्रस्तुत कर डॉ० भारिल्लजी ने बहुत बडी कमी की पूर्ति की है। अन्तिम अध्याय में “कुन्दकुन्द शतक" के रूप में 101 चुनी हुई गाथाएं पद्यानुवाद के साथ प्रकाशित की गई हैं, जो भाव भाषा की दृष्टि से सहजग्राय हैं / साफ सुथरा मुद्रण तथा अल्पमूल्य होने से पुस्तक जनोपयोगी बन गई है। - अखिल बंसल, संपादक शोषावर्श (त्रैमासिफ) लखनऊ, नवम्बर, 1988 ई० प्रस्तुत पुस्तक में विद्वद्वर डॉ० हुकमचन्दजी भारिल्ल ने सरल सुबोष भाषा में प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय संग्रह, नियमसार तथा अष्टपाहुढ़ नामक पंचपरमागमों का परिचय प्रस्तुत किया है। पुस्तक पठनीय और मनन योग्य है। - रमाकान्त जन, सम्पादक