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________________ 155 डॉ. महेन्द्रसागरजी प्रचण्डिया, निदेशक, जैन शोष अकादमी, अलीगढ़ (उ.प्र.) समयसार, प्रवचनसार, पंवास्तिकाय संग्रह, नियमसार और अष्टपाहुड़ महामनीषी प्राचार्य कुन्दकुन्द के पांच प्रख्यात ग्रंथराज हैं। इन सभी ग्रंथों में जिनमार्ग का सिद्धान्त और मूलाचार शब्दापित किया गया है। विद्वान लेखक डॉक्टर भारिल्ल ने इन सभी कृतियों का सार और सारांश सपाट बयानी में अभिव्यक्त किया है। आज के वैचारिक विश्व में प्रस्तुत पंच परमागम समादृत होगा। डॉ. प्रेमसुमनजी जैन, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.) पुस्तक बहुत उपयोगी है। इनसे प्राचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों को विषयवस्तु सहज ही हृदयंगम हो जाती है और पाठक को यह प्रेरणा प्राप्त होती है कि वह मूल ग्रन्थों का भी स्वाध्याय करे। कुन्दकुन्द शतक का पद्यानुवाद भी अच्छा हुप्रा है। डॉ. राजेन्द्रकुमारजी बंसल, कार्मिक अधिकारी, ओ. पी. मिल, अमलाई (म. प्र.) प्राचार्य कुन्दकुन्द के विचारों एवं उनकी कृतियों को जन ग्राह्य बनाने में डॉ. हुकमचन्दजी मारिल्ल द्वारा लिखित 'प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंचपरमागम' कृति विशेष उल्लेखनीय है। इसमें आचार्य कुन्दकुन्द के भावों को सार रूप में दर्शाया गया है। डॉ. भारिल्ल अध्यात्म के बेजोड़ चिन्तक तथा साहित्यिक प्रतिभा के धनी हैं। गद्य-पद्य एवं साहित्य की अन्य विधाओं में वे सिद्धहस्त है, जिसका प्रमाण यह कृति है / डॉ. कस्तूरचन्दजी सुमन, प्रभारी, जैन विद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी (राज.) सरल सुबोध भाषा से रोचक शैली में प्राचार्य कुन्दकुन्द का व्यक्तित्व और कृतित्व जानने के लिए डॉ. भारिल्ल द्वारा लिखी गई प्रस्तुत कृति वर्तमान जैन साहित्य की एक अनुपम देन है / डॉ. प्रेमचन्दजी रांवका, खेजड़ों का रास्ता, जयपुर (राज.) डॉ. भारिल्लजी की यह कृति उनकी जैन वाङ्गमय की सतत रचनामों की श्रृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है / निश्चय ही यह कृति उनके द्वारा सभी स्तर के पाठकों के लिए परमोपयोगी बन गई है। जैन एवं जैनेतर साहित्यानुरागियों के लिए यह कृति प्राचार्य कुन्दकुन्द के व्यक्तित्व और कृतित्व की दृष्टि से उपादेय सामग्री प्रदान करती है / जैनजगत (मासिक) बम्बई, मई, 1988 ई० ___ इस पुस्तक में आचार्य श्री कुन्दकुन्द का संक्षिप्त परिचय और उनकी पांच कृतियों का संक्षिप्त सार प्रकाशित किया गया है। समयसार, प्रवचनसार,
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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