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________________ 154 पण्डित रतनलालजी कटारिया, सम्पावक, जनसन्देश, केकड़ी (राज.) प्रस्तुत कृति सरस, सरल, सुबोध भाषा में लिखी गई है। पुस्तक की छपाई, कागज, जिल्द आदि उत्तम है / श्रमसिद्ध कृति के लिए साधुवाद / डॉ. राजारामजी जैन, एच. डी. जैन कॉलेज, पारा (बिहार) 'प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंचपरमागम' के प्रकाशन ने शिक्षा-जगत की एक बड़ी भारी कमी को पूरा किया है / स्वाध्यायी एवं शोधार्थी अद्यावधि इसका अनुभव करते रहे हैं कि उन्हें कुन्दकुन्द के कृतित्व एवं व्यक्तित्व का सार एक साथ ही उपलब्ध हो जाय तो उससे उन्हें कुन्दकुन्द के पूर्ण व्यक्तित्व की प्रारम्भिक झांकी सरलता से मिल सकेगी, किन्तु इस कमी की ओर किसी का ध्यान नहीं जा सका था। सुविख्यात विचारक डॉ. भारिल्ल ने उस कमी का अनुभव कर प्राचार्य कुन्दकुन्द के द्विसहस्राब्दी समारोह के पुण्य प्रसंग पर उक्त ग्रन्थ के प्रकाशन से दीर्घकालीन अभाव की पूर्ति की है। इसके लिए शिक्षा जगत उनका सदा आभारी रहेगा। डॉ. ज्योतिप्रसावजी जैन, ज्योतिनिकुंज, चार बाग, लखनऊ (उ.प्र.) भगवत्कुन्दकुन्दाचार्य के साहित्य और चिन्तन के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से लिखित 'प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंचपरमागम' कृति भाषा, शैली, मुद्रण, प्रकाशन एवं साज-सज्जा सभी दृष्टियों से उत्तम, पठनीय एवं मननीय है / लेखक व प्रकाशक वधाई के पात्र हैं। डॉ. हरीन्द्रभूषणजी जैन, निदेशक, अनेकान्त शोधपीठ, बाहुबली, उज्जैन 'प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंचपरमागम' अत्यन्त उपयोगी कृति है। आचार्य कुन्दकुन्द के व्यक्तित्व और कर्तृत्व के साथ उनके प्रमुख पांच आगम ग्रन्थों का संक्षेप में परिचय निश्चय ही विद्वानों एवं सामान्यजनों को अत्यन्त रुचिकर एवं ज्ञानवर्द्धक होगा / पुस्तक के अन्त में 'कुन्दकुन्द शतक' में गाथाओं का चयन सुन्दर हुआ है। इसे गद्य व पद्यानुवाद से प्रलंकृत कर देने के कारण इसको उपादेयता बढ़ गई है / महामहोपाध्याय डॉ. दामोदरजी शास्त्री, राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली निस्सन्देह इस कृति में युग प्रधान आचार्य श्री कुन्दकुन्द के समग्र चिंतन को प्रस्तुत कर 'गागर में सागर' की उक्ति को सार्थक किया गया है। प्राचार्य कुन्दकुन्द के प्रस्तावित द्विसहस्राब्दी समारोह के प्रसंग में इसका प्रकाशन और भी अधिक महत्वपूर्ण व उल्लेखनीय हो गया है /
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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