________________ अभिमत लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाओं एवं मनीषियों की दृष्टि में प्रस्तुत प्रकाशन वयोवृद्धवती विद्वान प्र. पण्डित जगनमोहनलालजी शास्त्री, कटनी (म.प्र.) प्राचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी समारोह के पुनीत अवसर पर यह डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल की कृति, जिसमें पांचों परमागमों का संक्षिप्त सार सरल भाषा में प्रतिपादन किया गया है, अभिनन्दनीय है / साधारण पाठकों के प्रारम्भिक ज्ञान के लिए पुस्तक अति उपयोगी है। इसे पढ़ने के बाद पाठक विस्तृत जानकारी के लिए स्वयं जिज्ञासु होगा और मूल ग्रंथ में उसका सरलता से प्रवेश होगा। इसमें प्राचार्य कुन्दकुन्द की ऐतिहासिक महत्ता पर सभी उपलब्ध प्रमाणों पर गहन अध्ययन कर तथ्य निरूपण किया गया है। ___ 'कुन्दकुन्द शतक' भी अच्छी लिखी गई है, उसका पद्य रूप में अवतरण प्रतिदिन सामायिकादि काल में सामायिक पाठ की तरह पठनीय है। प्रो. उवयचन्दजी जैन, एम. ए., सर्वदर्शनाचार्य, वाराणसी (उ. प्र.) ___ जो आत्मार्थी मूल ग्रन्थों को पढ़े बिना प्राचार्य कुन्दकुन्द के समयसारादि पंचपरमागमों के हार्द को संक्षेप में जानना चाहते हैं, उन्हें सरल एवं सुबोध हिन्दी में लिखित इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिए। डॉ. भारिल्ल ने इसमें पंचपरमागमों के प्रतिपाद्य विषय का बड़े ही रोचक ढंग से विवेचन किया है / इसका प्रथम अध्याय विशेष रूप से पठनीय है। कुन्दकुन्द शतक एक लघुकृति है, फिर भी इसका अपना महत्त्व है। इसमें पंचपरमागमों में से उच्चकोटि की 101 गाथाओं का चयन करके गाथानों के साथ उनका संक्षिप्त सरलार्थ भी दे दिया है। यह कृति वैसी ही है, जैसे कि समुद्र के जल को एक कुम्भ में भरकर रख दिया हो। इसके अध्ययन से प्राचार्य कुन्दकुन्द के पंचपरमागमों को एक झलक मिल जाती है। इसकी एक विशेषता मौर है कि डॉ. भारिल्ल ने उक्त 101 गाथाओं का हिन्दी पद्यानुवाद भी किया है / अतः जो सज्जन प्राकृत गाथा और हिन्दी पद्य का एक साथ रसास्वाद लेना चाहते हैं, उन्हें इस पुस्तिका को अवश्य पढ़ना चाहिए।