________________ कुन्दकुन्द शतक ( 1 ) एस सुरासुरमणुसिंदवंदिदं धोदघाइकम्ममलं / पणमामि वड्ढमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं / / सुर-असुर-इन्द्र-नरेन्द्र-वंदित कर्ममल निर्मलकरन / वृषतीर्थ के करतार श्री वर्द्धमान जिन शत-शत नमन / / मैं सुरेन्द्रों, असुरेन्द्रों और नरेन्द्रों से वंदित, घातियाकर्मों रूपी मल को धो डालनेवाले एवं धर्मतीर्थ के कर्ता तीर्थंकर भगवान वर्द्धमान को प्रणाम करता ( 2 ) अरुहा सिद्धायरिया उज्झाया साह पंच परमेठी / ते वि हु चिट्ठहि आदे तम्हा आदा हु मे सरणं / / अरहंत सिद्धाचार्य पाठक साधु हैं परमेष्ठि पण / सब आतमा की अवस्थाएँ आतमा ही है शरण / / अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु-ये पंच परमेष्ठी भगवान आत्मा की ही अवस्थाएँ हैं; इसलिए मेरे लिए तो एक भगवान आत्मा ही शरण है। 1. प्रवचनसार, गाथा 1 2. अष्टपाहुड : मोक्षपाहुड, गाथा 104