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________________ सप्तम अध्याय उपसंहार प्राचार्य कुन्दकुन्द के व्यक्तित्व के विहंगावलोकन एवं उनके पंच परमागमों के अति संक्षिप्त इस अनुशीलन के आधार पर यह निसंकोच कहा जा सकता है कि प्राचार्य कुन्दकुन्द दिगम्बर जिन प्राचार्य परम्परा के प्रतिष्ठापक सर्वमान्य प्राचार्य हैं / वे और उनके पंच परमागम एक ऐसे प्रकाश-स्तंभ हैं, जो विगत दो हजार वर्षों से दिगम्बर जिन-परंपरा एवं अध्यात्मलोक को लगातार आलोकित कर रहे हैं। आध्यात्मिक शान्ति और सामाजिक क्रान्ति का जैसा अद्भुत संगम इस अपराजेय व्यक्तित्व में देखने को मिलता है, वैसा अन्यत्र असंभव नहीं, तो दुर्लभ अवश्य है। आत्मा के प्रति अत्यन्त सजग आत्मोन्मुखी वृत्ति एवं शिथिलाचार के विरुद्ध इतना उग्र संघर्ष आचार्य कुन्दकुन्द जैसे समर्थ प्राचार्य के ही वश की बात थी। आत्मोन्मुखी वृत्ति के नाम पर विकृतियों की ओर से आँख मंद लेनेवाले पलायनवादी एवं विकृतियों के विरुद्ध जेहाद छेड़ने के बहाने जगतप्रपंचों में उलझ जानेवाले परमाध्यात्म से पराङ्मुख पुरुष तो पग-पग पर मिल जावेंगे; पर आत्माराधना एवं लोककल्याण में समुचित समन्वय स्थापित कर, सुविचारित सन्मार्ग पर स्वयं चलनेवाले एवं जगत को ले जानेवाले समर्थ पुरुष विरले ही होते हैं / प्राचार्य कुन्दकुन्द ऐसे ही समर्थ आचार्य थे, जो स्वयं तो सन्मार्ग पर चले ही, साथ ही लोक को भी मंगलमय मार्ग पर ले चले। उनके द्वारा प्रशस्त किया वह आध्यात्मिक सन्मार्ग आज भी अध्यात्मप्रेमियों का आधार है। प्राचार्य कुन्दकुन्द के अध्यात्म एवं आचरण संबंधी निर्देशों की आवश्यकता जितनी आज है, उतनी कुन्दकुन्द के समय में भी न रही
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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