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सूत्र १५-१६] द्वितीयाधिकरणे प्रथमोऽध्यायः
[८१ यस्य पदस्यानेकार्थस्यैकोऽर्थोऽसभ्यः स्यात् तदसम्यार्थान्तरम् । यथा वर्चः इति पद तेजसि विष्ठायाश्च । यत्तु पदं सभ्यार्थवाचकमपि एकदेशद्वारेणासभ्यार्थ स्मारयनि तदसभ्यस्मृतिहेतुः यथा 'कृकाटिका इति ॥ १४ ॥
_____न गुप्तलक्षितसवृतानि । २, १, १५ । अपवादार्थमिदम् । गुप्त लक्षितं संवृत्तश्च नाश्लोलम् ॥ १५ ॥ एषां लक्षणान्याह
अप्रसिद्धासभ्य गुप्तम् । २, १, १६ ।
जिस अनेकार्थक पद का एक अर्थ असभ्य हो, वह [ इस सूत्र में ] असभ्यार्थान्तर [पद से कहा गया है । जैसे 'वर्चस्' पद तेन तथा विष्ठा [दोनो] अर्थो में [ प्रयुक्त होता है इनमें से विष्ठा रूप दूसरा अर्थ जुगुप्सा व्यञ्चक अश्लील है । इसलिए यह पद 'असभ्यान्तर' पर होने से अश्लील है ] । और जो पद [ केवल ] सभ्यार्थ का वाचक होने पर भी एकदेश से असभ्यार्थ का स्मरण कराने वाला हो, वह [ भी] असभ्य अर्थ की स्मृति का हेतु होने से अश्लील है। जैसे 'कृकाटिका' पद । [ 'कृकाटिका' पद कर्ण के नीचे के भाग कनपटी का वाचक है। कर्णापरभागवाचकमपि कृकाटिका पदं ] परन्तु उसके एकदेश 'कार्टि' से मुर्दे को लेजाने वाली 'काठी' का स्मरण हो पाता है इसलिए वह 'अमङ्गल व्यजक अश्लीलता' का उदाहरण है। प्रेतयान खटिः काटी' इम वैजयन्ती कोश के अनुसार 'काटी' शब्द 'प्रेतयान' अर्थात् मुर्दा ले जाने वाली 'काठी' का बोधक है। एकवेश से उसका स्मारक होने से 'कृकाटिका' पद भी 'अमङ्गल व्यञ्जक अश्लील' कहलाता है । | ॥१४॥
यिदि असभ्यार्थ] गुप्त [अप्रसिद्ध अथवा लक्षित [लक्षणाबोध्य] अथवा [लोकव्यवहार से] दब गया [सवृत हो गया हो तो वह अश्लील नहीं होता।
___ यह [ सूत्र ] अपवाद के लिए है । गुप्त [अप्रसिद्ध ], लक्षित [ लक्षणागम्य ] अथवा [ लोकव्यवहार से ] सवृत [ दब जाने वाले असभ्यार्थ का बोधक पद ] अश्लील नहीं है ॥१५॥
इन [ गुप्त, लक्षित तथा संवृत] के लक्षण कहते है[जिसका ] असभ्य अर्थअप्रसिद्ध हो वह गुप्त [असभ्यार्य ] होता है।