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सूत्र ११] द्वितीयाधिकरणे प्रथमोऽध्यायः [७७ एषां क्रमेण लक्षणान्याह
रूढिच्युतमन्यार्थम् । २, १, ११ ।
रूढिच्युतं रूढ़िमनपेक्ष्य यौगिकार्थमात्रोपादानात् । अन्यार्थ पदम् स्थूलत्वात् सामान्येन घटशब्दः पटशब्दार्थ इत्यादिकमन्याथै नोक्तम् । यथा
ते दुःखमुच्चाबचमावहन्ति,
ये प्रस्मरन्ति प्रियसङ्गमानाम् । अत्र 'आवहतिः' करोत्यर्थो धारणार्थे प्रयुक्तः । प्रस्मरतिविस्मरणार्थः प्रकृष्टस्मरण इति ॥११॥
की अनुवृत्ति [पूर्वसूत्रो से] पाती है। और अर्थ [ इस शब्द की] भी [अनुवृत्ति पाती है। और दुष्ट पदं में जो एक वचन है उसका] वचनविपरिणाम [ परिवर्तन करके बहुवचन कर लेना चाहिए । तब इस सूत्र का अर्थ इस प्रकार ] होगा । अन्य प्रादि [ के बोधक ] पद दुष्ट होते है। यह सूत्र का अर्थ हुआ ॥ १० ॥
[इस प्रकार इस सूत्र में पदार्थ दोषो का 'उद्देश' अर्थात् नाममात्र से कथन करके मागे] क्रम से इनके लक्षण कहते है
[योगढ़ अथवा रूढ़ शब्द जब ] रूढ़ि से च्युत [अर्थात् रूढ़ अर्थ से भिन्न अर्थ में प्रयुक्त होता है तो वह ] अन्यार्थ होता है।
रूढ़ि से च्युत अर्थात् रूढ़ि को पर्वाह किए बिना यौगिकार्थ मात्र का उपादान करने से [ रूढ़ अर्थ से भिन्न अर्थ में प्रयुक्त हुआ पद ] अन्यार्थ पद कहलाता है । साधारणतः घट शब्द पट शब्द के अर्थ में प्रयुक्त होने पर अन्यार्थ पद होता है [ यह अन्यार्थ का लक्षण कहा जा सकता है। परन्तु] यह मोटी [स्थूलबुद्धि ग्राह्य ] बात होने से नहीं कहा। [अपितु 'रूढिंच्युतमन्यार्थम्' इस प्रकार अन्यार्थ का तनिक सूक्ष्म लक्षण किया है। आगे उसका उदाहरण देते है जैसे
जो प्रियजनो के सङ्गो को विशेष रूप से स्मरण करते है वह नाना प्रकार के दुःखो को उठाते है।
यहां करने [कृञ् घातु] के अर्थ में प्रयुक्त होने वाला प्राइ-पूर्वक वह धातु का [प्रावहति ] प्रयोग धारण के अर्थ में किया गया है । और