________________
७६)
काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती (सूत्र १० इति । तथा, हि 'खलु हन्तेति । सम्प्रति पदार्थदोपानाह
अन्यार्थनेयगूढार्थाश्लीलक्लिष्टानि च । २, १, १० ।
दुष्टं पमित्यनुवर्तते, अर्थश्च, वचनविपरिणामः । अन्यार्थादीनि पदानि दुष्टानीति सूत्रार्थः ॥१०॥
यह [ यहां खलु पद वाक्यालङ्कार के लिए प्रयुक्त हुआ है पादपूर्ति के लिए नहीं। इस लिए यह अनर्थक पद नहीं है ।] इसी प्रकार, हि, खल, हन्त इत्यादि [पद वाक्यालङ्कार के लिए प्रयुक्त होने पर अनर्थक नहीं होते ] है ॥६॥
इस प्रकार वामन ने यहा पाच प्रकार के पद-दोपों का निरूपण किया है परन्तु साहित्यदर्पण मे १८ प्रकार के पद दोप माने हैं। उनमें अश्लील दोप का उल्लेख वामन ने पददोपी मे न करके केवल पदार्य दोपों में किया है परन्तु नवीन प्राचार्यों ने पद दोप तथा अर्थ दोप दोनों में उसकी गणना की है।
पदार्थ दोपो का निरूपण
इसी प्रकार वामन ने अन्यार्थ, नेयार्थ, गूढार्थ, अश्लील और क्लिष्टत्व रूप पाच प्रकार के पदार्थ दोप माने हैं। परन्तु साहित्यदर्पण के समय तक अर्थदोपों की संख्या बढ़कर पाच के स्थान पर २३ तक पहुच गई है । साहित्य दर्पणकार ने तेईस प्रकार के अर्थदोप इस प्रकार गिनाए हैं
'अपुष्ट-दुाक्रम-ग्राम्य-व्याहता-अश्लील-कटता। अनंवीकृत-निर्हेतु-प्रकाशितविरुद्धता ॥ सन्दिग्ध-पुनरुतत्वे ख्याति-विद्या-विरुद्धते । साकाक्षता-सहचरमिन्नता-ऽस्थानयुक्तता || अविशेपे विशेपश्चा-नियमे नियमस्तथा। तयोविपर्ययो विध्यनुवादायुक्तते तथा ॥ निमुकपुनरुतत्वमर्थदोषाः प्रकीर्तिताः ॥
< Wwwm
[ ग्रन्थकार वामन ] अव पदार्थ दोषों को कहते है
१. अन्यार्थ, २. नेयार्थ, ३. गूढार्थ, ४. अश्लील, और ५. क्लिष्ट [ यह पांच प्रकार के पदार्थ दोष है।]
दुष्ट पदं इस [शब्द अथवा दुष्टं पदं शब्दों के अर्थ ] की