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________________ ४० ] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती [ सूत्र १ चौदह अथवा अठारह भेदों से प्रसिद्ध समस्त विद्याएं ], और ३. [ काव्यों का -ज्ञान, काव्यों की सेवा, पदों के निर्वाचन की सावधानता, और स्वाभाविक प्रतिभा तथा उद्योग रूप पांच को मिलाकर ], प्रकीर्ण [ फुटकर इस प्रकार यह तीन मुख्य ] काव्य [ निर्माण में कौशल प्राप्त करने ] के साधन हैं ॥ १ ॥ काव्य के इन्हीं साधनों को लेकर काव्यप्रकाशकार श्री मम्मटाचार्य ने अपने ग्रन्थ में काव्य के हेतुत्रो का इस प्रकार निरूपण किया है'शक्तिर्निपुणता लोकशास्त्रकाव्याद्यवेक्षणात् । काव्यज्ञशिक्षायाभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे ॥ इसमें वामन के लोक और विद्या दोनों का 'लोकशास्त्राद्यवेक्षणात् निपुणता ' के अन्तर्गत और प्रकीर्ण में से शक्ति को अलग करके तथा वृद्धसेवा श्रादि को 'काव्यज्ञशिक्षयाभ्यासः' मे अन्तर्गत करके, 'काव्यप्रकाशकार' ने भी वामन के समान ही ८ काव्याङ्गों को मुख्य रूप से तीन काव्य-साधनों के रूप में प्रस्तुत किया है । वामन के पूर्ववर्ती श्राचार्य 'भामह' ने काव्य के साधनों का निरूपण इस प्रकार किया है - P " शब्दश्छन्दोऽभिधानार्था इतिहासाश्रयाः कथाः । लोको युक्तिः कलाश्चेति मन्तव्या काव्ययैरमी ॥६॥ शब्दाभिधेये विज्ञाय कृत्वा तद्विदुपासनाम् । विलोक्यान्यनिबन्धाश्च कार्यः काव्यक्रियादरः ||१०|| इन सब काव्याङ्गों के निरूपण की तुलना करने से प्रतीत होता है कि काव्य के साधन सव लोगो की दृष्टि में लगभग एक जैसे ही हैं। परन्तु उन्हीं के पौर्वापर्य 'अथवा विभाग आदि में भेद करके भिन्न-भिन्न श्राचार्यों ने अपनेअपने ढंग से उनका निरूपण कर दिया है । 1 भामह के ऊपर उद्धृत किए हुए श्लोकों में अन्तिम पद का पाठ भ्रष्ट मालूम होता है । ग्रन्थ के सम्पादक महोदय स्वय भी शुद्ध पाठ का निश्चय नहीं कर सके हैं। उन्होने मूल में ही 'काव्ययैर्वशी' और 'काव्ययैरमी' यह दो पाठ दिए हैं । और एक तीसरा पाठ 'काव्ययैामी' नीचे टिप्पणी रूप में दिया है। इन तीनों में से किसी से भी अर्थ की सद्धति ठीक नहीं लगती है । फिर भी 'स्थितस्य गतिश्चिन्तनीया' इस सिद्धान्त के अनुसार १ काव्यप्रकाश १, २ । , भामह काव्यालङ्कार १, ६-१० ।
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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