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________________ सूत्र १५] प्रथमाधिकरणे द्वितीयोऽध्यायः [२७ तासां तिसृणां रीतीनां पूर्वा वैदर्भी ग्राह्या गुणानां साकल्यात् ॥ १४॥ न पुनरितरे स्तोकगुणत्वात् । १, २, १५ । इतरे गौड़ीयपाञ्चाल्यौ न ग्राह्य, स्तोकगुणत्वात् ॥ १५ ॥ उन तीनों रीतियों में से प्रथम अर्थात् वैदर्भी [ रीति सबसे अधिक ] ग्राह्य है, सम्पूर्ण [दशों ] गुणों से युक्त होने के कारण ॥१४॥ - अन्य दोनों [ गौदी तथा पाञ्चाली रीतियां ] अल्प गुण [केवल दो-दो गुण ] वाली होने से [ उतनी ] ग्राह्य नहीं हैं। दूसरी गौड़ी और पाबाली [ यह दोनों रीतियां ] स्वल्पगुण वाली [ केवल दो-दो गुण वाली ] होने से [ उतनी ] ग्राह्य नहीं हैं ॥१२॥ - इन तीनो रीतियो में से वामन ने केवल वैदर्भी को ग्राह्य और शेष दोनों को अग्राह्य अथवा वैदर्भी की अपेक्षा अल्पग्राह्य कहा है। यह मत केवल उनका ही नहीं है अपितु अन्य अनेक सिद्धहस्त और प्रसिद्ध कवियों ने भी उनके इस मत का समर्थन किया है, अथवा कम-से-कम वैदर्भी रीति की अत्यधिक प्रशंसा की है। 'नवसाहसाङ्कचरितम्' काव्य के रचयिता श्री पद्मगुप्त परिमल ने वैदर्भी रीति को जहा सबसे उत्तम मार्ग कहा है वहा उसका अनुसरण तलवार की घार पर चलने के समान कठिन बताया है। उन्होंने लिखा है 'तत्वस्पृशस्ते कवयः पुराणा श्रीमतृ मेएठप्रमुखा जयन्ति | निस्त्रिंशधारासदृशेन येषा वैदर्भमार्गेण गिरः प्रवृत्ताः॥ 'विक्रमाकदेवचरितम्' के रचयिता महाकवि 'विल्हण' ने भी वैदर्भी रीति की अत्यन्त प्रशसा करते हुए लिखा है 'अनभ्रवृष्टिः श्रवणामृतस्य सरस्वतीविभ्रमजन्मभूमिः । वैदर्भीतिः कृतिनामुदेति सौभाग्यलाभप्रतिभः पदानाम् ॥ महाकवि नीलकण्ठ ने अपने 'नलचरितम्' नामक नाटक में वैदर्भी रीति की प्रशंसा करते हुए लिखा है 'श्रादिः स्वादुषु या परा कवयता काष्ठा यदारोहणे, या ते निःश्वसितं नवापि च रसा यत्र स्वदन्तेतराम् 'नवसाहसाडुचरितम् १, ५। विक्रमाङ्कदेवचरितम् १, ६ । ३ नलचरितम् नाटक अड़ २.
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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