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काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती [ सूत्र ५९-६० कञ्चुकीया इति चि । ५, २, ५६ ।
'जीवन्ति राजमहिषीमनु कञ्चुकीयाः' इति कथम् ? मत्वर्थीयस्य 'छ' प्रत्ययस्याभावात् । अत आह, 'क्यचि' । क्यच' प्रत्यये सति कञ्चुकीया इति भवति । 'कञ्चुकमात्मन इच्छन्ति' कञ्चुकीयाः ।। ५६ ॥
बौद्धप्रतियोग्यपेक्षायामपि आतिशायनिकाः । ५, २, ६० ।
जिसका' [ यह बहुव्रीहि समास का स्वरूप होगा। इस प्रकार के समास होने पर 'अनुमेयशोभित्व' पद बन सकता है। इसमें से अनुमेयशोभित्व पद के अन्त का 'त्व' रूप] भावप्रत्यय तो [ बिना बोले भी ] गतार्थ हो जाने से [ यहां अनुमेयशोभि पद में ] प्रयुक्त नहीं किया है । जैसे [ 'निराकुलत्वं यथा स्यात् तथा तिष्ठति' अथवा 'धीरत्वेन सह इति सधीरमुवाच' इन विग्रहो में प्रयुक्त ] 'निराकुलं तिष्ठति तथा 'सधीरमुवाच' [प्रयोगों में [गतार्थ होने से 'त्व' रूप भाव प्रत्यय का प्रयोग नहीं किया जाता है । इसी प्रकार 'अनुमेयं शोभित्वं यस्य' इस विग्रह में 'स्व' रूप भाव प्रत्यय का प्रयोग न करने पर 'अनुमेयशोभि' पद की सिद्धि हो सकती है। ] ॥ ५८॥
'कञ्चुकीयाः' यह [प्रयोग 'सुप आत्मनः क्यच्' सूत्र से ] क्यच् [प्रत्यय ] होने पर [ सिद्ध होता है।
राजमहिषी के साथ कञ्चुकीय जीवित रहते है।
यह ['कञ्चुकीयाः' पद का प्रयोग] कैसे [सिद्ध होगा] ? [ क्योंकि . 'कञ्चुका येषा सन्ति इति कञ्चुकीयाः' इस अर्थ में कञ्चुक शब्द से ] मत्वर्थीय
छ प्रत्यय का [ विधायक कोई सूत्र न होने के कारण ] प्रभाव होने से। (कञ्चुकीया पद सिद्ध नही हो सकता है । यह पूर्वपक्ष हुआ ] इस [समाधान ] 'के लिए कहते है । क्यचि अर्थात् [ 'सुप प्रात्मनः क्यच्' अष्टा० १,१,८ सूत्र से] श्यच् प्रत्यय होने पर [ और 'क्यचि च' अष्टा० ७, ४, ३३ सूत्र से कञ्चुक शब्द के अन्तिम प्रकार के स्थान पर ईकार होकर ] 'कञ्चुकीयाः' यह [ पद सिद्ध ] होता है । [ उसका विग्रह अथवा अर्थ ] 'कञ्चुकमात्मन इच्छन्ति' अपने लिए 'कञ्चुक' चाहते है इस अर्थ में 'कञ्चुकीयाः [ यह प्रयोग सिद्ध होता है ॥ ५९॥
बौ . [शब्द से उपात्त न होने पर भी बुद्धि में सन्निकृष्ट ] प्रतियोगी की अपेक्षा म भी अतिशयार्थक [तरप् तमप् आदि प्रत्यय ] हो सकते है ।
[साधारणतः देवदत्त यज्ञदत्त से अधिक बलवान् है इस प्रकार देवदत्त यज्ञदत्त रूप दोनो प्रतियोगियो के शब्दतः उपात्त होने पर ही 'बलवत्तरः'