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सूत्र ५८ ]
पञ्चमाधिकरणे द्वितीयोऽध्याय.
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त्वात् प्रक्रमस्येति बहुव्रीहिणैव भवितव्यम् । तत्कथमिति मत्वर्थीयस्याप्राप्तौ चतुरस्रशोभीति प्रयोगः ।
आह । णिनौ । चतुरस्र' शोभते इति ताच्छीलिके गिनाचयं प्रयोगः । अथ, अनुमेयशोभीति कथम् । नह्यत्र पूर्ववद् वृत्ति: शक्या कतुमिति ।
शुभेः साधुकारिण्यावश्यके वा सिनिं कृत्वा तदन्ताच्च भावप्रत्यये पश्चाद् बहुव्रीहिः कर्तव्यः । अनुमेयं शोभित्वं यस्य इति । भावप्रत्ययस्तु गतार्थत्वान्न प्रयुक्त' । यथा निराकुलं तिष्ठति, सधीरमुवाच इति ॥ ५८ ॥
बहुव्रीहि समास में दुबारा 'इनि' श्रादि के करने बिना ही वह अर्थ प्रतीत हो जाता है इसलिए ] प्रक्रिया के लाघव से बहुव्रीहि [ समास ] ही होना चाहिए । तो इस प्रकार [ कर्मधारय से ] मत्वर्थीय [ इनि प्रत्यय ] के प्राप्त न होने पर 'चतुरस्रशोभि' यह प्रयोग कैसे होगा । [ यह पूर्वपक्ष हुआ । ] |
[ उत्तर ] कहते है । [ 'व्रीह्यादिभ्यश्च' से इनि प्रत्यय नहीं अपितु 'चतुरस्रं शोभितु शीलं प्रस्य' इस विग्रह में 'सुप्यजातौ णिनिस्ताच्छील्यै श्रष्टा० ३,२,७८ इस सूत्र से ] 'चतुरखं शोभते' इस प्रकार ताच्छील्यक णिनि [ प्रत्यय ] के होने पर यह [ चतुरस्रशोभि ] प्रयोग सिद्ध होता है।
[प्रश्न ] अच्छा 'अनुमेयशोभि' [ यह प्रयोग ] कैसे बनेगा । [ यह प्रश्न करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि 'चतुरस्रशोभि' के समान ताच्छील्य में णिनि करने से भी इस 'श्रनुमेयशोभि' शब्द की सिद्धि नही हो सकती है । क्योकि ] यहां [ 'अनुमेयशोभि' इस पद में ] पूर्व [ चतुरस्रशोभि ] के समान [ 'अनुमेयं शोभितु ं शील अस्य' इस प्रकार का ] विग्रह नही किया जा सकता है । [ क्योकि यहा इस प्रकार के अर्थ को सङ्गति नहीं लगती है । और ताच्छील्य में णिनि करने के लिए कर्म का उपपद होना आवश्यक है । परन्तु यहां किसी कर्म की विवक्षा सम्भव नहीं है। और उसके बिना ताच्छील्य णिनि नहीं हो मकता है । तव 'अनुमेयशोभि' पद कैसे बनेगा । यह पूर्वपक्षी का प्रश्न है । श्रागे इसका उत्तर देते है ] ।
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[उत्तर] शुभ [ धातु ] से साधुकारी [ अर्थ ] में [ साधुकारिण्युपसख्यानम् इस वार्तिक से ] श्रथवा श्रावश्यक [ अर्थ ] में [ श्रावश्यकाधमर्ण्ययोणि नि. अप्टा० ३, ३, १७० इस सूत्र से ] णिनि [ प्रत्यय ] करके [ 'शोभि' पद बन जाने पर ] उस णिनिप्रत्ययान्त ['शोभि' शब्द ] से [ 'तस्यभावस्त्वतलों' श्रष्टा० ५, १, ११९ सूत्र से ] भाव प्रत्यय [ त्व ] होने पर पीछे [ उस 'शोभित्व' शब्द का 'अनुमेय' शब्द के साथ ] बहुव्रीहि [ समास ] करना चाहिए । 'अनुमेय है शोभित्व