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सूत्र ४७]
पञ्चमाधिकरणे द्वितीयोऽध्याय.
[३३१
'कुवलयदलनीला कोकिला बालचूते' इत्यादिषु 'नीला' इति चिन्त्यम् । 'कोकिला नीली' भवितव्यम् । नीलशब्दात् "जानपद' इत्यादि सूत्रेण 'प्राणिनि च' इति डीपविधानात् ॥ ४६॥
मनुष्यजातेविवक्षाविवक्षे! ५, २, ४७ ।
आम्र के नये वृक्ष पर कुवलय दल के समान नीला [ नीलवर्णा] कोकिला [ बैठी है।
इत्यादि [प्रयोगो] में [कोकिला के विशेषण रूप में प्रयुक्त ] नीला' यह [पद] चिन्त्य [अशुद्ध ] है । कोकिला [ के साथ स्त्रीलिङ्ग में ] 'नोलो' यह [विशेषण ] होना चाहिए । नील शब्द से [ जानपद-कुण्ड गोण-स्थल-भाज-नागकाल-नील-कुश-कामुक-कबराद् वृत्यमत्रवपनाकृत्रिमात्राणास्थौल्यवर्णाच्छादनायोविकारमैथुनेच्छाकेशवेशेषु । अप्टा० ४, १, ४२] जानपद इत्यादि सूत्रसे ['नोलादोषधौ' इस वार्तिक से औषधि अर्थ में तथा ] 'प्राणिनि च' इस [ वानिक ] से [प्राणी के सम्बन्ध वोध में ] 'डी' का विधान होने से ['नीलो गौ'. 'नीली कोकिला' इत्यादि प्रयोग होने चाहिएं। 'नोला कोकिला' प्रयोग नहीं होना चाहिए। प्रत नीला प्रयोग अशुद्ध है ] ॥४६॥
[इकारान्त उकारान्त मनुष्यजातिपरक शब्दो में ] मनुष्य जाति की विवक्षा और अविवक्षा [ दोनो होती है।
मनुष्य जाति की विवक्षा होने पर इकारान्त 'निम्ननाभि' आदि गन्दो से 'इतो मनुप्यजाते' सूत्र से 'डी' होकर 'निम्ननाभी' पद बना और उसके सम्बोधन में 'अम्वार्थनद्योह्रस्व' सूत्र से ह्रस्व होकर हे 'निम्ननाभि' पद वनता है । इसी प्रकार उकारान्त सुतनु' शब्द से ऊडुत ४, १, ६६, सूत्र से 'ऊ' प्रत्यय हो कर 'सुतनू' शब्द वना और उसका सम्बुद्धि मे 'अम्बार्थनद्योह्र स्व.' पा० ७, ३, १०७ । सूत्र से ह्रस्व होकर हे सुतनु' गन्द बनता है । और मनुष्यजाति की अविवक्षा मे इकारान्त 'निम्ननाभि' शब्द का पठी मे निम्ननाभे' प्रयोग बनता है अन्यथा निम्ननाम्या' होता । 'वरतनु में मनुष्य जाति की विवक्षा न होने पर 'ऊ' नही होता है इसलिए 'वरतनु' प्रथमा के एक वचन मे बनता है । अन्यथा विवक्षा होने पर अड् होकर 'वरतनू' प्रयोग होगा। इसलिए---
'अष्टाध्यायी ४, १, ४२ ।