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काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती [सूत्र ४५-४६ . शवलादिभ्यः स्त्रियां टापोऽप्राप्तिः । ५, ५, ४५ ।
'उपस्रोतः स्वस्थस्थितमहिषशृङ्गाप्रशबला: स्रवन्तीनां जाताः प्रमुदितविहङ्गास्तटभुवः ॥
'भ्रमरोत्करकल्माषाः कुसुमानां समृद्धयः ॥ इत्यादिपु स्त्रियां टापोप्राप्तिः। "अन्यतो डीए' इति डीप विधानात् । तेन 'शवली' 'कल्मापी' इति भवति ॥ ४५ ॥
प्राणिनि नीलेति चिन्त्यम् । ५, २, ४६ ।
शब्द के साथ ] कवि ने [ भूतकाल सूचक ] 'स्म' का प्रयोग किया था [ परन्तु वाद में ] लेखको ने असावधानी से उसको लिखा नहीं, ऐसा [ मैं मानता हूं] मालूम होता है। [अर्थात् 'आह' आदि का वर्तमान काल में प्रयोग अनुचित है। यदि उनको प्रयुक्त किया जाय तो उनके साथ 'स्म' पद का भी प्रयोग करना चाहिए । तव दोष नही रहेगा] ॥ ४४ ॥
'शवल' आदि [शब्दो] से स्त्रीलिङ्ग में 'टाप्' नहीं हो सकता है। [ इसलिए 'शबला' आदि प्रयोग न करके 'शबली प्रयोग करना उचित है ] ।
प्रमुदित विहङ्गो से युक्त नदियो के किनारे की भूमिया, धारा के समीप स्वस्थ [ निश्चिन्त ] होकर बैठे हुए भैसो के सींगो के अग्रभागों से 'शवल [चित्रविचित्र, कर्वर] हो गई थी।
__.पुष्पो की समृद्धिया [ समूह ] भ्रमर पंक्तियो से चित्रित ['शबला कर्बुर] हो रही है।
___ इत्यादि [प्रयोगो ] में स्त्रीलिङ्ग में [जो टाप करके 'शवला', 'कल्माषा' आदि प्रयोग बनाए है, वह उचित नहीं है क्योकि उनमें ], टाप नही [ प्राप्त ] हो सकता है । 'अन्यतो 'डी' [अष्टा० ४, १, ४० ] इस सूत्र से [ तकारोपध से भिन्न वर्णवाची अनुदात्तान्त प्रातिपदिक से स्त्रीलिङ्ग में ] डी' का विधान होने से। इसलिए [ इन शब्दो से 'डी' प्रत्यय करके ] 'शबली', 'कल्माषी यह [प्रयोग शुद्ध होता है।['शवला', 'कल्माषा' यह प्रयोग अनुचित है] ॥४५॥
प्राणी [ के सम्बन्ध बोधन ] में स्त्रीलिङ्ग में 'नोला' यह [ प्रयोग भी ] चिन्त्य [ अशुद्ध है।
'अष्टाध्ययी ४, १, ४० ।