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काव्यालङ्कारसूत्रवृत्तो
[ सूत्र १७-१८
न धान्यपष्ठादिषु पष्ठीसमासप्रतिषेधः 'पूरणेनान्यतद्धि
तान्तत्वात् ।। ५, २, १७ ।
'धान्यपष्ठम्', 'तान्युच्छपष्ठाङ्कितसैकतानि' इत्यादिपु न षष्ठीसमासप्रतिषेधः । पूरणेन, पूरणप्रत्ययान्तेनान्यतद्धितान्तत्वात् । षष्ठो 'भागः षष्ठ इति "पूरणाद्भागे तीयादन्' "पष्ठाष्टमाभ्यां न च' इत्यन विधानात् स प्राप्तः ॥ १७ ॥
३१२ ]
पत्रपीतिमादिषु गुणवचनेन । ५२, १८ ।
'पत्रपीतिमा, पचमाली - पिङ्गिलिमा' इत्यादिपु पष्ठीसमासप्रतिषेधो गुणवचनेन प्राप्तो, बालिश्यान्तु न कृतः ॥ १८ ॥
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'धान्यषष्ठः' इत्यादि [ प्रयोगो ] में पूरण-गुण-सुहितार्थ सदव्यय-तव्यसमानाधिकरणेन' [ इत्यादि सूत्र से 'सतां षष्ठः' के समान ] षष्ठी समास का प्रतिषेध नहीं होता है । [ क्योकि 'धान्यषष्ठः' में प्रयुक्त षष्ठ शब्द के ] पूरण, [ श्रर्थक प्रत्यय ] से अन्य [ ४' पूरणाद्भागे तीयादन्', इस सूत्र के अधिकार में 'पष्ठाष्टमाभ्यां न च' ५, ३, ५० इस सूत्र से श्रन् प्रत्यय रूप ] तद्धितान्त होने से ।
'धान्यषष्ठम्' 'उञ्छषष्ठ से श्रङ्कित बालू वाले' [ प्रयोगों] में [पूरणगुणसुहितार्थसदव्ययतव्यसमानाधिकरणेन २, २, ११ इस सूत्र से 'षष्ठ' शब्द को 'पूरणप्रत्ययान्त' मान कर ] षष्ठी समास का निषेध नहीं किया जा सकता है [ क्योकि पण्ठ शब्द में ] पूरण अर्थात् पूरण प्रत्ययान्त से श्रन्य [ 'पूरणाद्भागे तीयादन् ' ५, ३, ४८ के अधिकार में 'बष्ठाष्टमाभ्यां न च' ५, ३, ५० इस सूत्र से विहित 'अन्' प्रत्यय रूप ] तद्धितान्त होने से । 'षष्ठो भागः षष्ठ' इस [ विग्रह ] में 'पूरणाद्भागे तीयादन्' [ की अनुवृत्ति मे ] ' षष्ठाष्टमाभ्या च' [ ५,३, ५० ] इस से अन् का विधान होने से वह [ षण्ठी तत्पुरुष समास ] प्राप्त है ॥१७॥
'पत्रपोतिमा' इत्यादि [ प्रयोगों] में [ पीतिमा रूप ] गुण [ का ] वचन होने से [ ‘पूरणगुण' इत्यादि पूर्वोक्त सूत्र के अनुसार षष्ठी समास का निषेध होना चाहिए । वह नहीं किया गया है । श्रतः यह प्रयोग दूषित है ] 1 'पत्रपोतिमा', 'पक्ष्मालीपिङ्गलिमा' इत्यादि [ प्रयोगो ] में गुणवचन
१- ४ श्रष्टाध्यायी ५, ३, ४८ ।
* श्रष्टाध्यायी ५, ३, ५० । अष्टाध्यायो २२.११ ।
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