SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती [सूत्र २४ व्यतिरेकविशेषोक्तिभ्यां व्याजस्तुति भिन्नां दर्शयितुमाहसम्भाव्यविशिष्टकर्माकरणान्निन्दा स्तोत्रार्था व्याजस्तुतिः। ४, ३, २४ । ___ अत्यन्तगुणाधिको विशिष्टः । तस्य च कम विशिष्टकर्म । तस्य सम्भाव्यमानस्य कर्तुं शक्यस्याकरणान्निन्दा विशिष्टसाम्यसम्पादनेन स्तोत्रार्था व्याजस्तुतिः । यथा बबन्ध सेतु गिरिचक्रवातबिभेद सप्तकशरेण तालान् । एवंविधं कर्म ततान रामस्त्वया कृतं तन्न मुधैव गर्वः ॥ २४॥ व्यतिरेक और विशेषोक्ति से व्याजस्तुति को अलग दिखलाने के लिए [अगले सूत्र में उसका लक्षण ] कहते है कर सकने योग्य [ सम्भाव्य ] विशिष्ट [ पुरुष के ] कर्म के न करने से [ वस्तुतः ] स्तुति के लिए जो निन्दा करना है वह व्याजस्तुति [अलङ्कार कहलाता है। गुणो में [ उपमेय की अपेक्षा] अत्यन्त ‘अधिक [पुरुष ] विशिष्ट [पुरुष ] कहलाता है। उसका कर्म विशिष्ट कर्म [ यह षष्ठी तत्पुरुष समास] हुआ । उस सम्भाव्य अर्थात् कर सकने योग्य [ कर्म ] के न करने से [जो] निन्दा [ उस ] विशिष्ट के साथ साम्य सम्पादन द्वारा [उपमेय को वास्तविक स्तुति के लिए [ की जाय ] वह व्याजस्तुति [अलंकार कहलाता है । जैसे [रामचन्द्र ने] पर्वतो [ के पत्थरों के समूह से [ समुद्र का] पुल बांधा, एक बाण से सात ताल वृक्षो का भेदन किया। इस प्रकार के [पाश्चर्य जनक ] कर्म रामचन्द्र ने किए थे। तुमने उनमें से एक भी नहीं किया फिर व्यर्थ ही गर्व क्यों करते हो। । यहा रामचन्द्र के किए हुए विशिष्ट कर्मों के न करने से राजा की ऊपरी तौर से निन्दा की गई है । परन्तु उससे राजा का राम के साथ सादृश्य अभीष्ट है इसलिए यहा निन्दा के स्तुतिपरक होने से 'व्याज स्तुति है। भामह ने इस 'व्याज स्तुति' अलङ्कार का निरूपण इस प्रकार किया है 'दूराधिकगुणस्तोत्रव्यपदेशेन तुल्यताम् । किञ्चिद् विधित्सोर्या निन्दा व्याजस्तुतिरसौ यथा । 'भामह काव्यालंकार ३, ३१ ।
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy