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________________ २५२ ] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती उपमेयोपमायाः क्रमो भिन्न इति दर्शयितमाहउपमेयोपमानानां क्रमसम्बन्धः क्रमः । ४, ३, १७ । १ [ सूत्र १७ 'प्रदाय वित्तमर्थिभ्य. स यशोधनमदित. । सता विश्वजनीनानामिदमस्खलित व्रतम् ॥ ४० ॥ 1 श्रर्थात् भामह के अनुसार परिवृत्ति अलङ्कार के साथ 'अर्थान्तरन्यास' भी अवश्य रहना चाहिए । इसी बात को बोधन करने के लिए उन्होने परिवृत्ति के लक्षण में स्पष्ट रूप से 'अर्थान्तरन्यासवती परिवृत्ति' यह लिख दिया है । श्रीर उसका उदाहरण भी उसी प्रकार का दिया है । परन्तु वामन तथा उत्तरवर्ती प्राचार्यो ने परिवृत्ति के साथ 'प्रर्थान्तरन्यास' का होना श्रावश्यक नही माना है। साहित्यदर्पणकार ने परिवृत्ति का लक्षण इस प्रकार किया है -- परिवृत्तिविनिमय समन्यूनाधिकैर्भवेत् । अर्थात् परिवृत्ति या विनिमय सम, न्यून और अधिक तीनो के साथ हो सकता है । वामन ने जिस 'विसदृग' इस एक भेद के अन्तर्गत न्यून और अधिक दोनो का सग्रह कर लिया था, साहित्यदर्पणकार ने न केवल उसको न्यून श्रौर अधिक करके दो भागो में विभक्त कर दिया है । अपितु उस 'विसदृश' की जिसमें न्यून और प्राधिक्य की नही अपितु केवल भेद की ही प्रधानता थी न्यूनाधिकपरक व्याख्या करके कुछ नूतनता भी प्रदर्शित की है। तीनो प्रकार की परिवृत्ति के उदाहरण इस प्रकार दिए है दत्त्वा कटाक्षमेणाक्षी जग्राह हृदय मम । मया तु हृदय दत्त्वा गृहीतो मदनज्वर ॥ इसके प्रथम चरण में सम से श्रौर द्वितीय चरण में न्यून से विनिमय दिखलाया है । तस्य च प्रवयसो जटायुष स्वर्गिणः किमिव शोच्यतेऽधुना । येन जर्जरकलेवरव्ययात् क्रोतमिन्दुकिरणोज्ज्वलं यशः ॥ इसमें अधिक से विनिमय किया गया है । [ पूर्व कहे हुए ] उपमेयोपमा [ श्रलङ्कार ] से 'क्रम' [ यथासंख्य अलङ्कार ] भिन्न है इस बात को दिखलाने के लिए [ अगले सूत्र में 'क्रम' जिसे अन्य लोग 'यथासंख्य' नाम से कहते है, का लक्षण ] कहते है उपभान और उपमेयों का क्रम से सम्बन्ध [ प्रदर्शित करना ] 'क्रम' [ नामक अलङ्कार होता ] है | २ भामह काव्यालङ्कार ३, ४० | साहित्यदर्पण १०, ८१ ।
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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