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२३६] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्तों
[ सूत्र 'उन्मिमील कमल सरसीनां कैरवन्च निमिमील मुहूर्तात् ।। अत्र नेत्रधर्मावुन्मीलननिमीलने सादृश्याद् विकाससङ्कोचौ लक्षयतः । 'इह च निरन्तरनवमुकुलपुलकिता हरति माधवी हृदयम् । मदयति च केसराणां परिणतमधुगन्धि निःश्वसितम् ।' अत्र निश्वसितमिति परिमलनिर्गमं लक्षयति । 'संस्थानेन स्फुरतु सुभगः स्वार्चिषा चुम्बतु द्याम् ।' 'आलस्यमालिङ्गति गात्रमस्याः।
इत्यादि वचनो के अनुसार ] लक्षणा के अनेक कारण होते है । उन [अनेक कारणो ] में सादृश्य [ नामक कारण ] से [ की गई ] लक्षणा [ हो] 'वक्रोक्ति' [ नामक अलङ्कार ] है । जैसे
[प्रातःकाल के समय सूर्योदय होते ही ] तनिक देर में तालाबों के कमल खिल गए और क्षण भर में करव बन्द हो गए।
यहां नेत्र के धर्म उन्मीलन तथा निमीलन सादृश्य से [कमलों के ] क्किास तथा सङ्कोचन को लक्षणा से बोधित करते है। [प्रतएव सादृश्यमूलक लक्षणा होने से 'वक्रोक्ति' अलङ्कार है । इसी का दूसरा उदाहरण देते है ]
__ यहां [ उद्यान में ] ऊपर से नीचे तक [ निरन्तर ] नवीन कलियो से [ लदी हुई ] पुलकित माधवी [ लता दर्शको के ] हृदय को हरण कर रही है
और केसर [ वृक्षविशेष ] का पके मधु को गन्ध से युक्त निश्वास मत्त सा कर देता है।
पहा [ इस उदाहरण में ] निःश्वसित [ मुख्य रूप से प्राणी का धर्म है परन्तु वह सादृश्यनिमित्तक लक्षणा से ] सुगन्ध के निकलने को लक्षित करता है। [ इसी प्रकार के और भी बहुत से उदाहरण हो सकते हैं जिनमें सादृश्य से लक्षणा का प्राश्रय लिया जाता है। उनमें से पाच उदाहरण आगे देते है ।
अपने संस्थान [प्राकार कलेवर ] से सुन्दर रूप से प्रकाशित हो और अपनी कान्ति से आकाश का चुम्बन करे। [ इसमें 'चुम्बन' पद सादृश्य लक्षणा से स्पर्श को लक्षित करता है ।
पालस्य उसके शरीर का मालिङ्गन कर रहा है। [ इसमें पालस्य का शरीर को पालिङ्गन करना लक्षणा से शरीर में पालस्य की व्याप्ति को सूचित करता है ।