________________
सूत्र १]
चतुर्थाधिकरणे तृतीयोऽध्याय.
[२२१
में बहुत मतभेद रहा है । भरत ने अपने नाट्यशास्त्र में उपमा, रूपक, दीपक
और यमक केवल इन चार ही अलङ्कारो का वर्णन किया है । वामन ने ३० अर्थालङ्कार और २ शब्दालङ्कार मिला कर कुल ३२ अलङ्कारो का निरूपण किया है । दण्डी ने ३५ ही अलङ्कारो का निरूपण किया है । परन्तु इनके पूर्ववर्ती भामह ने ३६ प्रकार के और उद्भट ने ४० प्रकार के अलङ्कारो का वर्णन किया है । इनके उत्तरवर्ती रुद्रट ने ५२ प्रकार के, उसके आगे काव्यप्रकाशकार मम्मटाचार्य ने ६७, उनके बाद जयदेव ने अपने 'चन्द्रालोक' मे १०० और उनके भी व्याख्याकार प्रप्यय दीक्षित ने अपने 'कुवलयानन्द' नामक ग्रन्थ में १२४ अलड्रारो का निरूपण किया है। इस प्रकार, भरतमुनि के प्रारम्भिक चार अलबारो से बढकर अप्यय दीक्षित के समय में अलङ्कारो की संख्या १२४ तक पहुंच गई है । हमने अपने 'साहित्य-मीमांसा' नामक ग्रन्थ मे अलङ्कारो की इस सख्यावृद्धि का निरूपण इस प्रकार से किया है
'दृष्टा वेदेऽप्यलङ्कारास्तूपमारुपकादय. । भूतोपमादिभेदेन यास्केनापि निरूपिता ॥१॥ शिलालेनटसूत्राणामुल्लेखः पाणिनिकृत । सूचयत्यस्य शास्त्रस्य प्रलता पारिपनेरपि ॥२॥ तथापि प्रल भरतात् साहित्य नोपलभ्यते । तस्मात् तदादि विज्ञ या घारासाहित्यिकी त्वियम् ॥ ३॥ यथोत्तर च धाराणा ग्रन्थाना च प्रवेशत.। सरितामिव वेगेन वद्धतेऽस्या. कलेवरम् ॥ ४॥ उपमा रूपकञ्चव दीपक यमक तथा । चत्वार एवालद्वारा भरतेन निरूपिताः ॥ ५॥ वामनेन च द्वात्रिंशद् भेदास्तस्य निरूपिता.। पञ्चविंशद्विपश्चाय दण्डिना प्रतिपादित ॥ ॥ नवत्रिंशद्विष पूर्व भामहेन प्रदर्शित. । चत्वारिंशद्विधरचव उद्भटेन प्रकीर्तित. ॥ ७ ॥ द्विपचाशद्विघ प्रोक्तो रुद्रटेन तत. परम् । सप्तषष्टिविघ. प्रोक्त प्रकाशे मम्मटेन च ॥८॥
"साहित्य-मीमांसा।