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________________ १९२] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती [सूत्र ४ सा पूर्णा लुप्ता च । ४, २, ४ । । सा उपमा पूर्णा लुप्ता च भवति ॥ ४॥ गुणद्योतकोपमानोपमेयशब्दानां सामग्र्ये पूर्णा । ४, २, ५ । गुणादिशब्दानां सामध्ये साकल्ये पूर्णा । यथा कमलमिव मुख मनोज्ञमेतत् ।। ७ ॥ इति ॥५॥ ही है । वह केवल एक पद मे समाप्त नही हो सकती है । फिर भी यह उमान उपमेयादि अनेक पद मिल कर भी पूर्ण वाक्य नही होते है । इसलिए इस प्रकार की उपमा को पदार्थवृत्ति' उपमा ही कहा है । जहाँ यह सब मिलकर पूरा वाक्य बन जाता है वहा उपमा को 'वाक्यार्थवृत्ति' उपमा कहा जाता है । इसी से 'पाण्डयोऽयमसापितलम्बहार.' इत्यादि श्लोक में वाक्यार्थवृत्ति उपमा है ॥३॥ ___पहिले उपमा के 'लौकिकी' और 'कल्पिता' यह दो भेद किए थे। उसके बाद प्रकारान्तर से उसके 'पदार्थवृत्ति' और 'वाक्यार्थवृत्ति' यह दो भेद किए है। इसके बाद तीसरे प्रकार से उपमा के 'पूर्णा' और 'लुप्ता' उपमा इस प्रकार के दो भेद करते है । वामन के पहिले दोनो प्रकारो को उत्तरवर्ती प्राचार्यों ने विशेष महत्व नही दिया है । परन्तु इस 'पूर्णा' और 'लुप्ता' उपमा वाले भेद को उत्तरवर्ती पालङ्कारिक प्राचार्यों ने अपनाया है । वह [ उपमा ] पूर्णा और लुप्ता [ दो प्रकार को ] होती है। वह उपमा पूर्णा और लुप्ता [ भेद से दो प्रकार का ] होती है ॥४॥ १ गुण [अर्थात् उपमान उपमेय का साधारण धर्म ], २. द्योतक [अर्थात् उपमा का द्योतक इवादि शब्द ], ३. उपमान [चन्द्र आदि ] और ४. उपमेय [ मुखादि, इन चारो के वाचक शब्दो के पूर्ण [ रूप से उपस्थित ] होने पर पूर्णा [ उपमा ] होती है । गुणादि [१. साधारण धर्म, उपमावाचक इवादि शब्द, ३. उपमान और ४. उपमेय इन चारो के वाचक ] शब्दो के पूर्ण [ रूप से उपस्थित ] होने पर 'पूर्णा [ उपमा होती ] है। जैसे यह मुख कमल के समान सुन्दर है। इस उदाहरण में १ 'कमल' 'उपमान', २. मुख" उपमेय', ३. 'मनोज्ञ' यह इन दोनो का 'साधारण धर्म', तथा ४. 'इव' यह उपमा 'वाचक' पद है। इन चारो के उपस्थित होने से यह 'पूर्णोपमा' का उदाहरण है ॥ ५॥
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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