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काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती [सूत्र ६-१० अर्थो व्यक्त. सूक्ष्मश्च । ३, २, ६ ।
यस्यार्थस्य दर्शनं समाधिरिति स द्विधा, व्यक्तः सूक्ष्मश्च । व्यक्तः स्फुटा, उदाहृत एव ॥४॥
सूक्ष्मं व्याख्यातुमाह
सूक्ष्मो भाव्यो वासनीयश्च । ३, २, १० ।
सूक्ष्मो द्विधा भवति भाव्यो वासनीयश्च । शीघनिरूपणागम्यो भाव्यः । एकाग्रताप्रकर्षगम्यो वासनीय इति । भाव्यो यथा
अन्योन्यसंवलितमांसलदन्तकान्ति सोल्लासमाविरलसं वलितार्थतारम् । लीलागृहे प्रतिकलं किलकिञ्चितेषु
व्यावर्तमाननयनं मिथुनं चकास्ति ।। कल्पना होने से ] 'अयोनि है और दूसरे का [ श्लोक में उस पूर्व श्लोक की छाया का प्राश्रय होने से ] 'छायायोनि' [अर्थ ] है ॥८॥
अर्थ [प्रकारान्तर से ] दो प्रकार का [ और ] होता है । एक व्यक्त [स्थूल, सर्वजनसवेद्य ] और [ दूसरा ] सूक्ष्म [ सहृदयमात्रसंवेध] ।
जिस अर्थ का दर्शन 'समाधि' [रूप अर्थगुण कहलाता ] है वह व्यक्त [स्थूल ] और सूक्ष्म दो प्रकार का होता है। व्यक्त स्पष्ट [अर्थ ] है। उसका उदाहरण [पूर्वोक्त 'पाश्वपेहि' तथा 'मा भैः शशाडू मादि दोनो श्लोक ] दे ही चुके है ॥६॥
[दूसरे प्रकार के ] सूक्ष्म [अर्थ ] को व्याख्या करने के लिए कहते हैसूक्ष्म [अर्थ ] 'भाव्य' और 'वासनीय [ दो प्रकार का होता है।
सूक्ष्म [ अर्थ ] दो प्रकार का होता है [एक ] 'भाव्य' और [ दूसरा] 'वासनीय' । सरसरी दृष्टि [शीघ्र निरूपण ] से [ही ] समझ में आजानेवाला 'भाव्य' [ होता ] है । और अत्यन्त ध्यान देने [ एकाग्रता के प्रकर्ष ] से सम. झने योग्य [अर्थ ] 'वासनीय' [होता है । 'भाव्य' [ का उदाहरण ] जैसे
[रतिकाल में अपने लोलागृह मे नायक-नायिका का जोडा ] एक दूसरे से मिश्रित हो रही है सुन्दर वन्तकान्ति जिसकी,[ इससे परस्पर सस्मित संल्लाप और अधरपान आदि सूचित होते है ] सोल्लास [ इससे हर्ष औत्सुक्य ] तथा प्राविरलसं ] पालस्ययुक्त [ इससे रतिश्रम प्रगदौर्बल्य सूचित होते है ] एवं [रतिकोड़ा की ] प्रत्येक कला पर [ मानन्द से ] अर्धमुद्रित, और [ नायिका के ]