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________________ सूत्र ५-६] द्वितीयाधिकरणे द्वितीयोऽध्याय. [६३ न वृत्तदोषात् पृथग्यतिदोषो वृत्तस्य यत्यात्मकत्वात् ।२,२,५। __ वृत्तदोषात् पृथग् यतिदोषो न वक्तव्यः । वृत्तस्य यत्यात्मकत्वान् ॥५॥ यत्यात्मकं हि वृत्तमिति भिन्नवृत्त एव यतिभ्रष्टस्यान्तर्भावान्न पृथग् ग्रहणं कार्यम् । अत आह न, लक्ष्मण पृथक्त्वात् । २, २, ६ । नायं दोपः, लक्ष्मणो लक्षणस्य पृथक्त्वात् । अन्यद्धि लक्षणं वृत्तस्यान्यद् यतेः । गुरुलघुनियमात्मक वृत्तं, विरामात्मिका च यतिरिति ॥ ६॥ यहा तक वाक्यदोषों मे 'भिन्नवृत्त' और 'यतिभ्रष्ट' दो दोष दिखाए हैं। यहा यह शङ्का उपस्थित होती है कि यह दोनो प्रकार के दोष वृत्त अर्थात् छन्द में ही पाए जाने वाले दोष हैं । दोनों ही वृत अर्थात् छन्द के वैरस्यापादक होते हैं। इसलिए 'भिनवृत्त' से 'यतिभ्रष्ट दोष को पृथक् मानने की क्या आवश्यकता है। इस प्रश्न को उठाकर उसका समाधान करने के लिए ग्रन्थकार अगले प्रकरण का प्रारम्भ करते हैं। वृत्त के [ भी ] यतिविशिष्ट [ यत्यात्मक ] होने से वृत्तदोष से पृथग् यतिदोष [ 'यतिभ्रष्ट' दोष का मानना उचित ] नहीं है। वृत्त दोष से पृथक् यति दोष कहना उचित नहीं है। वृत्त के यतिविशिष्ट [या यति स्वरूप होने से ॥५॥ वृत्त यत्यात्मक [ यतिविशिष्ट हो ] होता है इसलिए भिन्न वृत्त में ही यतिभ्रष्ट [दोष ] का [ भी ] अन्तर्भाव हो जाने से [ यतिभ्रष्ट दोष का ] पृथग् ग्रहण नहीं करना चाहिए । [यह शड्डा हो सकती है ] इसलिए [ उसके समाधानार्थ ] कहते है [भिन्नवृत्त' और 'यतिभ्रष्ट' दोनो के ] लक्षणो के भिन्न होने से यह [दोनो दोषो को अभिन्न कहना ] ठीक नहीं है। यह [आपका दिखाया हुआ ] दोष [गेक ] नहीं है। [भिन्नवृत्तत्व तथा यतिभ्रष्टत्व दोनो के ] लक्ष्म अर्थात् लक्षण के पृथक् होने से। वृत्त का लक्षण और है और यति का लक्षण अन्य है। [वाक्य में ] गुरु लघु [रूप से वर्ण विन्यास ] का नियामक वृत्त होता है और विराम रूप [विराम को नियामिका ] यति होती है।
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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