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सूत्र २२ ]
क्लिष्टं यथा
द्वितीयात्रिकरणे प्रथमोऽध्यायः
धम्मिलस्य न कस्य प्रेक्ष्य निकामं कुरङ्गशावाच्याः । रज्यत्यपूर्वबन्धन्युत्पत्तेर्मानसं शोभाम् ॥ २२ ॥
एतान् पढपदार्थदोषान् ज्ञात्वा कविस्त्यजेदिति तात्पर्यार्थः ॥ २२॥
इति श्री पण्डितवरवामनविरचित काव्यालङ्कारसूत्रवृत्तौ 'दोषदर्शने' द्वितीयेऽधिकरणे प्रथमोऽध्यायः । पदपदार्थदोषविभागः ।
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व्यञ्जक अश्लीलता का उदाहरण होता है ] ।
इसी दूसरे उदाहरण मे 'महापथेन गतवान् ' का दूसरा अर्थ 'परलोकमार्गेण गतवान्' अर्थात् मर गया, यह भी हो सकता है । उस दशा मे यह वाक्यगत श्रमङ्गलातङ्कदायी अश्लीलता का उदाहरण हो जायगा ।
इस प्रकार इन दोनों श्लोको मे अश्लीलता दोष के व्रीडादायी, जुगुप्सादायी और श्रमङ्गलातङ्कदायी तीनो प्रकार के भेद के वाक्यगत उदाहरण दिखा दिए हैं। अब आगे एक श्लोक वाक्यगत 'क्लिष्टत्व' दोप का दिखलाते हैं । क्लिष्टत्व [ का उदाहरण ] जैसे
मृग शावक के नेत्रो के समान नेत्र वाली [उस सुन्दरी ] के केशपाश [ धम्मिल जूडा, केशपाश ] के बाघने की अपूर्व चतुरता की शोभा को देखकर किस का मन अत्यन्त प्रसन्न नहीं होता ।
इस श्लोक का अर्थ दूरान्वय के कारण समझना कठिन हो जाता है । 'कुरङ्गशावाच्या. धम्मिलस्य पूर्वबन्धव्युत्पत्तेः शोभा निरीक्ष्य कस्य मानस निकाम न रज्यति' इस प्रकार इसका अन्वय होता है । परन्तु इन सब पर्दों के अत्यन्त व्यवहित होने से वाक्य के अर्थ की प्रतीति बढी कठिनता से होती है । श्री पण्डितवरवामनविरचित 'काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति' मे द्वितीय 'दोषदर्शन' श्रधिकरण मे प्रथम अध्याय समाप्त हुआ । पढ़ और पदार्थ के दोपो का विभाग समाप्त हुआ |
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इति श्रीमदाचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणिविरचिताया काव्यालङ्कारद पिकाया हिन्दीव्याख्याया द्वितीये 'दोषदर्शनाधिकरणे' प्रथमोऽध्याय समाप्तः ।