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________________ उपयोगिता हाथो सचाई हाथ आनेवाली नहीं है, यह बात पक्के तौरपर जान लेनी चाहिए । जो कुछ है उसकी गर्दनपर अपने प्रयोजनका जूआ जा चढ़ानेसे हमारी उन्नतिकी गाड़ी नहीं खिंचेगी। जीवन ऐसे समृद्ध न होगा । साहित्यको, कलाको, धर्मको, ईश्वरको, सब कुछको प्रयोजनमें जाननेकी चेष्टा निष्फल है। यह नहीं कि वे निष्प्रयोजन हैं पर श्राशय यह कि उन सत्योंकी सचाई प्रयोजनातीत है । लोक- कर्ममें इस तथ्यको श्रोझल करके चलने से हम ख़तरे में पड़ सकते हैं। पर मनुष्यका धन्य भाग्य यह है कि उसकी मूर्खताकी क्षमता भी परिमित है। हमारे समाजमें साठ वर्षसे ऊपरके वृद्धोंकी उपयोगिता कितनी है ? अगर वह तौलमे उतनी मूल्यवान् नहीं है कि जितना उनके पालनमे व्यय हो जाता हो, तो क्या यह निर्णय किया जा सकता है कि उन सबको एक ही दिन आरामके साथ समाप्त करके स्वर्ग खाना कर दिया जाय ? समाज-व्यवस्थाका हिसाब-किताब शायद दिखावे कि इस भाँति इंतज़ाममें सुविधा और सफाई होगी पर यह नहीं किया जा सका और न किया जा सकता है । यदि अब तक कही यह नही किया जा सका तो निष्कर्ष यह है कि उपयोगिताशास्त्र फिर अपनी उपयोगितामें किसी महत्तत्त्वका प्रार्थी है। एक बार एक प्रामिष भोजनके प्रचारकने निरुत्तर कर देनेवाली बात सुनाई। उन्होने कहा कि अगर बकरे खाए न जायँ तो बताइए उनका क्या किया जाय ? कोई उपयोग तो उनका है नहीं । तिसपर वे इतने बहुतायत से पैदा होते और इतने बहुतायतसे बढ़ते हैं कि १८३
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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