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________________ उपयोगिता शायद चौथी क्लासमें आकर अंग्रेजीकी पहली किताबके पहले सबकमें हमने पढ़ा-'परमात्मा दयालु है । उसने हमारे पीनेके लिए पानी बनाया, जीनेके लिए हवा, खानेके लिए फल-मेवा, आदि आदि।' पढ़कर वह सीधी तरह हमें पचा नहीं । हम भोले नहीं थे। बच्चे तो थे, पर बुद्धिमान् किसीसे कम नहीं थे। पूछा-क्यों मास्टरजी, सब कुछ ईश्वरने बनाया है ! । मास्टरजी बोले-~-नहीं तो क्या ? जहाँ हम पढ़ते थे वहाँ हवा आधुनिक थी। बालकोंमे स्वतंत्र बुद्धि जागे, यह लक्ष्य था। हमने कहा-तो उस ईश्वरको किसने बनाया है ? और उस ईश्वरने कहाँ बैठकर किस तारीखको यह सब कुछ बनाया है ! मास्टरजीने कहा-पढ़ो पढ़ो । वाहियत बातें मत करो। जी हाँ, वाहियात वात ! पहलीमें नहीं, दूसरीमें नहीं, तीसरीमें नहीं, चौथी क्लासमें हम थे । हमें धोखा देना आसान न था। और कुछ जाने न जानें, इतना तो जानते ही थे कि ईश्वर वहम है । यह भी जानते थे कि ईश्वरने सभ्यताका बहुत नुकसान किया है । वह पाखंड है । उससे छुट्टी मिलनी चाहिए । सो, उस सबकपर हमने मास्टरजीको चुप करके ही छोड़ा । मास्टरजीकी एक भी बात हमारे ' १७२
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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