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जैनतस्वादर्श ६. मूंग. ७. नोठ, ८. उड़द, ९. डूंट, १०. वोड़ा, ११. मटर, १२. तुमर, १३. किसारी, १४. कोद्रया, १५. कंगणी, १६. चना, १७. वाल, १८. नेयी, १९. कुल्य, २०. मनूर, २१. तिल. २२. नंडा, २३. कूरी, २४. अटी, यह खाने तथा व्यवहार वारते अयोगी हैं। तथा धनियां, भिंडी, तोवा, अजगन्न, जीरा, यह भी धान्य की जाति में हैं। परंतु ये सर औषधि सादि में ज्ञान आते हैं। तथा सामक, नगली. मुरट, चेकरीया, ये नारवाड़ देश में प्रसिद्ध हैं। और मी जो बड़क पान्य बिना बोये उगता है, जिस को लोक काल दुकाल ने साते हैं, इस सर्व जाति के अन्न-का परिमाण करे।
तीसरा क्षेत्रपरिमाण व्रत-सो बोने का खेत, तथा वागनाग नादिक जानना । इस क्षेत्र के तीन भेद है, उस ने एक क्षेत्र तो ऐसा है. कि जो वर्षा के पानी से होता है, दूसरा रादिक के जर सींचने से होता है, तीसरा पूर्वोक्त दोनों प्रकार से होता है। इन का परिनाण करे। ___ चौथा वास्तुक-परिमाण ब्रत-सो घर, हाट, हवेली प्रमुख; तिन के भी तीन भेद है। एक तो भोरा प्रमुत्ता दूसरा उच्छूित-ऊंची हवली, एक मंजली, दो मंजली, तीन नंजली, यावत् सातभूमि तक, तीसरी नीचे भोरा प्रमुख ऊपर एक दो आदि नंजल तिन का परिमाण करे।
पांचमा खप्यपरिग्रह-परिमाण त-सो सिके बिना का