________________
अष्टम परिच्छेद कुमारी तथा विधवा, इन को अपरिगृहीता कहते हैं, क्योंकि इन का कोई मार नहीं है। जेकर कोई अल्पमति विषयाभिलाषी मन में विचारे, कि मैने तो परस्त्री का त्याग करा है; परन्तु ए तो किसी की भी स्त्रियें नहीं हैं, इन के साथ विषय सेवने से मेरा ब्रतमंग नहीं होवेगा। ऐसा विचार करके कुमारी तथा विधवा स्त्री के साथ भोगविलास करे, तो प्रथम अतिचार लग जावे । तथा स्त्री भी व्रतधारक होकर कुमारे पुरुष से तथा रंडे पुरुष से व्यभिचार सेवे, तो तिस स्त्री को भी अतिचार लगे।
दूसरा इत्वरपरिगृहीतागमन अतिचार-इवर नाम थोड़े काल का है, सो थोड़े से काल के वास्ते किसी पुरुष ने धन खरच के वेश्यादि को अपनी करके रक्खी है। इहां कोई अज्ञान के उदय से मन में ऐसा विचार करे कि मेरे तो परस्त्री का त्याग है, अरु इस वेश्यादि को तो मैने अपनी स्त्री बना करके थोडे से काल के वास्ते रक्खी है, तो इस के साथ विषय सेवने से मेरा व्रतभंग नही होवेगा। ऐसे अज्ञान के विचार से उसके साथ संगम-विषय सेवन करे, तो दूसरा अतिचार लगे । तथा स्त्री भी जव अपनी सौकन की वारी के दिन में अपने भार से विषय सेवे, वो अपने मन में ऐसा विचार करे, कि अपने पति के साथ विषय सेवने से, मेरा व्रतमंग नहीं होवेगा; क्योंकि मैंने तो पर पुरुष का त्याग करा है। यह दूसरा अतिचार । इन