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________________ अष्टम परिच्छेद अदत्त के चार भेद हैं:१. किसी की वस्तु बिना दिये ले लेनी, इस का नाम स्वामी अदत्त है । २. सचित्त वस्तु अर्थात् भदत्त के चार जीववाली वस्तु-फूल, फल, बीज, गुच्छा, ___ भेद पत्र कंद, मूलादिक, तथा बकरा, गाय, सूअर आदिक, इन को तोड़े, छेदे, मेदे, काटे, सो जीव अदत्त कहिये। क्योंकि फूलादि जीवों ने अपने शरीर के छेदने मेदने की आज्ञा नहीं दीनी है, कि तुम हम को छेदो मेदो, इस वास्ते इसका नाम जीव अदत्त है । ३. जो वस्तु तीर्थकर अहंत ने निषेध करी है, तिसका जो ग्रहण करना । जैसे साधु को अशुद्ध आहार लेने का निषेध है, अरु श्रावक को अभक्ष्य वस्तु ग्रहण करने का निषेध है। सो इन पूर्वोक्त को ग्रहण करे, तो इस का नाम तीर्थंकर अदत्त है । ४. गुरु अदत्त जैसे कोई साधु शास्त्रोक्त निर्दोष आहार व्यवहार शुद्ध लावे, पीछे उस आहार को जो गुरु की आज्ञा विना खावे, सो गुरु अदत्त है। ___ यह चारों अदत्त संपूर्ण से रीति तो जैन का यति ही त्याग सकता है, गृहस्थ से तो एक स्वामी अदत्त ही त्यागा जाता है, इस वास्ते इसी की यहां मुख्यता है । तिस वास्ते पराई वस्तु पूर्वोक्त प्रकार से लेनी नहीं। जेकर ले लेवे, तो चोर नाम पड़े, राजदण्ड होवे; अपयश अप्रतीति होवे, इस वास्ते न लेनी चाहिये । अरु जिस वस्तु की बहुत मनाई
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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