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जैनतत्त्वादर्श नहीं है, लेने से चोर नाम नहीं पड़ता है, तिस की जयणा करे । अरु किसी की गिरी पड़ी वस्तु मिल जावे, पीछे जेकर जान जावे कि यह वस्तु अमुक की है, तब तो उस को दे देवे । जेकर उस वस्तु के स्वामी को न जाने, अरु अपना मन दृढ रहे तो लेवे नहीं । अरु कदाचित् बहुमोली बस्तु होवे, अरु मन दृढ न रहे, तो उस वस्तु को लेकर अपने पास कितनेक दिन रक्खे। जेकर उसका मालिक कोई जान पड़े तो उसको दे देवे, जेकर उसका स्वामी कोई मालूम न पड़े तो धर्मखाते में उस धन को लगा देवे । जेकर लोम अधिक होवे, तो आधा धर्म में लगा देवे । तथा अपनी जमीन को खोदते हुए तिस में से धन निकल आवे, तो रखने का आगार है । परन्तु इसमें भी आधा भाग अथवा चौथा हिस्सा धर्म में लगावे। तथा दूसरे की जगा मोल से ली होवे, उसमें से खोदते हुए धन निकल आवे, जेकर मन में सतोष होवे, तब तो उस मकानवाले को वो धन दे देवे; जेकर लोभ होवे, तब आधा धर्म में लगावे, अरु आधा अपने पास रक्खे । तथा कोई पुरुष अपने पास धन रख कर, पीछे से मर गया होवे, अरु उसका कोई वारिस न होवे, तब श्रावक उस धन को पंचों के आगे जाहिर करे, जो कुछ पंच कहें, सो करे । कदापि देश काल की विषमता से उस धन को जाहिर करते कोई राज सम्बंधी क्लेश उठता मालूम पड़े, कोई दुष्ट राजा लोभ के वश से कहे, कि तेरे घर में और भी ऐसा धन