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जैनतवादर्श
मोटी चोरी-भीत फोडी कुंभल देकर अथवा अदत्तादान एकले को रस्ते में छल बल करके ठग लेना । विरमणबत जबरदस्ती से किसी की वस्तु खोस लेनी ।
नजर बचा के किसी की वस्तु उठा लेनी। अरु कोई वस्तु घर गया हो, जब वो मांगने आवे तव, मुकर जावे । तथा हीरा, मोती, पन्ना प्रमुख झूठे सच्चे का अदल बदल कर देवे, इत्यादि अदत्तादान अर्थात् चोरी का स्वरूप है । इस के करने से परलोक में खोटी नरकादि गति प्राप्त होती है । अरु इस लोक में भी प्रगट हो जावे, तो राज दण्ड, अपयश, अप्रतीति होवे, इस वास्ते श्रावक अदत्तादान का त्याग करे । इस अदत्तादान व्रत के दो भेद हैं । प्रथम द्रव्य अदत्तादानविरमण व्रत-सो पूर्वोक प्रकार से दूसरों की वस्तु पडी और विसरी हुई लेवे नहीं, सो द्रव्य अदनादान-विरमणबत जानना । दूसरा भाव अदत्तादानविरमण व्रत-सो पर जो पुद्गल द्रव्य, तिस की जो रचनावर्ण, गंध, रस, स्पर्शादि रूप तेवीस विषय, तथा आठ कर्म की वर्गणा । यह सर्व पराई वस्तु हैं, सो वस्तु तत्त्वज्ञान में जीव को अग्राह्य है, तिस की जो उदय भाव करके वांछा करनी, सो भाव चोरी है। तिस को जिनागम के सुनने से त्यागना, पुद्गलानंदीपना मिटाना, सो भाव अदत्तादानविरमणव्रत कहिये। अतः जो जो कर्मप्रकृति का बंध मिटा है, सो भाव अदत्तविरमणव्रत है। सामान्य प्रकार से