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________________ ५९ अष्टम परिच्छेद में बैठ कर कुछ मता करते हों । उन को देख के कहे, कि तुम राजविरुद्ध मता करते हो, राजदण्ड दिलावे | ऐसा कह कर उनकी भंडी करे, तीसरा स्वदारमंत्र भेद स्त्री ने अतिचार — अपनी कही है, वो बात लोको में कोई गुप्त बात अपने पति से प्रगट करे, उपलक्षण से भाई प्रमुख की कही वात को प्रगट करे । क्योंकि लज्जनीय बात के प्रगट होने से स्त्री आदि कूपादिक में डूब मरती हैं । चौथा मृषा उपदेश अतिचार -- दूसरों को झूठी वस्तु के करने का उपदेश करे, तथा विषय सेवने के चौरासी आसन सिखावे, तथा दूसरों को दुःख में पड़ने का उपदेश करे; वीर्य पुष्ट होने की औषधि बतलावे, जिस से वो बहुत विषय सेवें । जिस से विषयकषाय अधिक उत्पन्न होवें, ऐसा उपदेश करे । पांचमा कूटलेखकरण अतिचार - किसी के नाम का झूठा पत्र, बही बना लेना, अगले अंक को तोड़ के और बना देना, तथा अक्षर खुरच देना, झूठी मोहर छाप बना लेनी, इत्यादि कूट लेख अतिचार हैं। इन पांच अतिचार अरु पांच प्रकार के पूर्वोक्त झूठ को नरकादि गति के कारण जान कर श्रावक वर्ज देवे । तीसरा स्थूल अदत्तादानविरमणत्रत लिखते हैं । प्रथम
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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