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गाय,
जैनतस्वादर्श
दूसरा गवालीक - सर्व चौपद - हाथी, घोड़ा, बलद, ' भैंस प्रमुख सम्बंधी झूठ न बोले ।
तीसरा भूम्यलीक दूसरे की धरती को अपनी कहे, तथा और की भूमि को और की कहे । तथा घर, हवेली, वाड़ी, बाग, बगीचा वृक्षादिक सम्बंधी तथा सर्व परिग्रह संबंधी मी झूठ न बोले ।
चौथा थापणमोसा का झुठ - कोई पुरुष श्रावक को प्रतीति वाला जान कर, उसके पास विना साक्षी तथा विना लिखत करे कोई वस्तु रख गया है, फिर वो मांगने आवे, तब मुकर न जावे, जैसे कि मैं तुम को जानता ही नहीं, तुम कौन हो ! ऐसा झूठ बोल के उसकी वस्तु रख लेवे । यह भी श्रावकने नहीं करना ।
पांचमा झूठी साक्षी भरनी-सो दो जने आपस में झगड़ते हैं, तिस में झूठे पासों धन लेकर अथवा उसके लिहाज से झूठी गवाही देनी । यह भी काम श्रावक ने नहीं करना । इस व्रत के भी पांच अतिचार श्रावक वर्जे ।
प्रथम सहसाभ्याख्यान अतिचार-विना विचारे किसी को कलंक देना - तू व्यभिचारी है, झूठा है, चोर है, इत्यादि कहना | जेकर श्रावक किसी का प्रगट कोई अवगुण देखे, तो भी अपने मुख से न कहे, तो फिर कलंक देना, तो महापाप है, सो कैसे करे !
दूसरा रहसाभ्याख्यान अतिचार — कई एक पुरुष एकांत