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जैनववादर्श तब अतिमारारोपण अतिचार होता है। श्रावक को तो सदा जिस बैल, रासभ, गाड़ी प्रमुख में जितना भार लादते होवें, उस से भी पांच सेर, दस सेर, कम लादना चाहिये, तभी व्रत शुद्ध रहेगा । उसमें भी जेकर किसी जानवर की चलने की शक्ति कम होवे, तब विवेकी पुरुष तो तिस भार को भी थोड़ा कर देवे। अरु जानवर दुर्वल होवे तो तिस के घास दाने की पूरी खबर लेवे । परन्तु मन में, ऐसा विचार न करे, कि सर्व लोक जितना मार लादते हैं, तिन के बराबर मैं भी लादता हूं, यह तो व्यवहार शुद्ध है। किन्तु अधिक बोझ होवे, तो और भाड़ा कर लेवे । श्रावकों का यह व्यवहार है।
पांचमा अतिचार मात-पानी का व्यवच्छेद करना-जो बलद घोड़े के खाने योग्य होवे, सो बन्द कर देवे, अथवा उसमें से कछुक काई लेवे, अरु खाने का समय लंघा कर पीछे खाने को देवे, तो अतिचार लगे। तथा किसी की आजीविका-नौकरी बन्द करे, वो भी इसी अतिचार में है। श्रावक तो दासी, दास, कुटुम्ब, चौपाये, बैलादि, इन सर्व के खाने पीने की खबर ले के पीछे आप भोजन करे। उपलक्षण से हिंसाकारी मन्त्र, तन्त्रादि किसी को करे, वे भी अतिचार जानने । यह पांच अतिचार, श्रावक जान तो लेवे, परन्तु करे नहीं।
इन बारह व्रतों के सर्व अतिचार भंग होने के संभवा