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जैनतस्वादर्श
चाहे कुछ हो जावे, तो भी जो नियम लिया है, उस को कमी तोड़ना न चाहिये । परन्तु यह कहना सर्वथा ठीक नहीं; क्योंकि जब पहिले ही आगार रक्खे गये, तो फिर व्रतभंग क्योंकर हुआ ? अरु जो आर्त्तध्यान में मर जाते हैं, अरु आगार नहीं रखते हैं, वे जिन मार्ग की शैली से अज्ञान हैं । इस वास्ते छः छंडी अरु चार आगार, सर्व बारों ही व्रतों में जानने । अरु साधु के सर्व प्रत्याख्यानों में अनशन पर्यंत यही चार आगार जानने ।
इति श्री तपागच्छीय मुनि श्रीबुद्धिविजय - शिष्य सुनि आनंदविजय - आत्मारामविरचिते जैनतत्त्वादरों सप्तमः परिच्छेदः संपूर्णः ॥